बिगड़ती है, संवरती है,
ठुकराती है, अपनाती है
इस तरह ज़िन्दगी मुझे जीना
सिखाती है
देकर कुछ लम्हे हंसी के,
ख़ुशी के
ज़ख्म कोई नया ये फिर दे जाती
है
खुद ही हंसती है मेरी बेबसी
पर
और खुद ही मेरे ज़ख्म सहलाती
है
कभी कभी एक अजनबी सी दुनिया दिखाती
तो कभी बचपन की सहेली सी नज़र
आती है
चमकेंगे निकलकर गर्दिश से
ये तारे
मैं इसे समझाती हूँ, ये
मुझे समझाती है
चल ढूंढे अपनी ज़मीन अपना
आसमान
ख्वाबों के शहर में मुझे खींचकर
ले जाती है
बस कुछ पल के साथ को ही दुनिया में मिलते है सभी
अकेली मैं रह जाती हूँ,
अकेली यह रह जाती है ...
- - स्नेहा गुप्ता
21/04/2013 5:10PM
बहुत सटीक अभिव्यक्त किया जिंदगी को, वाकई जिंदगी दोनों रूपों में मौजूद रहती है. हम चाहे जिस पक्ष को अधिक महत्व दें. बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बिगड़ती है, संवरती है, ठुकराती है, अपनाती है
ReplyDeleteइस तरह ज़िन्दगी मुझे जीना सिखाती है ...
जिंदगी सब कुछ कर जाती है ... हंसाती भी है ओर रुलाती भी है ...
इसी को जिंदगी कहते हैं ...