Friday, June 5, 2020

अजी नाम में क्या रखा है...

सन 1981 में मैं फ़ैज़ाबाद के सिविल कोर्ट में लिपिक के पद पर नौकरी कर रहा था. (सिविल कोर्ट कहने में थोड़ा रोब पड़ता है, दरअसल आम ज़बान में उसे कचहरी ही कहते हैं). वहां के बहुत संस्मरण हैं मेरे पास लेकिन आज सिर्फ़ नामों से संबंधित बात ही करूंगा.

वहां एक वकील के मुंशी का नाम परमात्मा प्रसाद था लेकिन मेरे सेक्शन के बड़े बाबू, न जाने क्यों, उसे हमेशा मुख्यमंत्री कह कर बुलाते थे. परमात्मा उन्हें हमेशा मना करता था और नाराज़ होता था लेकिन वे उसे मुख्यमंत्री कह कर छेड़ते रहते थे. एक दिन परमात्मा ख़राब मूड में रहा होगा सो उनकी शिकायत करने सीधे डिस्ट्रिक्ट जज साहब के चैम्बर में चला गया. जज साहब उसकी शिकायत सुन कर हंसने लगे और बोले कि वो तुम्हारा सम्मान ही बढ़ा रहे हैं कोई बुरी बात तो कह नहीं रहे. परमात्मा प्रसाद भी एक ही शातिर किस्म का मुंशी था. तुरन्त बोला कि जज साहब कल से मैं आपके अर्दली को जज साहब कह कर सलाम करूंगा, आप मेहरबानी से नाराज़ मत होइएगा. यह सुन कर जज साहब का तेज जाग उठा और मेरे बड़े बाबू को बुला कर उन्होंने बहुत डांटा. उस दिन से बड़े बाबू ने उसे मुख्यमंत्री कहना छोड़ दिया.

मैं क्योंकि कॉलेज से निकल कर सीधा वहां नियुक्त हो गया था इसलिये अदालती दुनिया देखने का मेरा पहला ही अवसर था यह. सच कहता हूं कि मुकदमों में ऐसे अजीब अजीब नाम पढ़ने में आते थे कि पता ही नहीं चलता था कि यह व्यक्ति का नाम है या वस्तु का. कभी कभी लोगों से पता चलता था कि उनके नाम भी अजीबोग़रीब परिस्थितियों में रख दिये जाते थे. जैसे किसी के बच्चे मर जाते थे, इस बार बच्चा होने पर बुरी नजर से बचाने के लिये घूरे (कूड़े) पर रख दिया गया थोड़ी देर के लिये तो जनाब का नाम घूरेलाल या घुरहू हो गया. किसी को इसी वजह से नौकरों के हाथ बेच दिया गया और फिर खरीद लिया गया तो श्रीमन का नाम बेचालाल या बेचन हो गया. बच्चे के पैदा होते ही पड़ोसी से झगड़ा हो गया तो बच्चे का नाम झगड़ू तो रखना तय हो ही गया. (.... पढ़िए पूरा लेख... )

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