Saturday, April 28, 2012

मेरी आँखों में देखने की कोशिश न करना

मेरी आँखों में देखने की कोशिश न करना
इनमे तुम्हे अपने लिए दीवानगी नज़र आएगी
मेरे चेहरे को पढने की कोशिश जो करोगे
तुम्हे भी मेरी बेइन्तेहाँ चाहत हो  जायेगी


दोस्तों की भीड़ में खोयी हुई समझना
हर ग़म से बेखबर हो सोयी हुई समझना
मेरे दिल में झांकने की कोशिश न करना
दिल दहला देने वाली वीरानगी नज़र आएगी
गर खयालो में मुझे तुम लाने लगोगे
तुम्हे भी फिर मेरी आदत हो जायेगी


बेवज़ह की कोई पहचान ही समझना
मुझे तुम अजनबी अनजान ही समझना
मेरे अल्फाजो को महसूस करने की कोशिश न करना
बस तुमसे ही जुड़ी तिश्नगी नज़र आएगी
मेरे जज्बातों को समझने की कोशिश जो करोगे
तुम्हे भी मुझसे बेपनाह मुहब्बत हो जायेगी

- स्नेहा गुप्ता  
00:45 A.M. 28/04/2012 
  

Saturday, April 21, 2012

करता क्यों नहीं




करता क्यों नहीं मेरे लिए दुआ आज कोई
क्या रहा नहीं मेरा यहाँ आज कोई

मेरी ज़ुरूरत नहीं रह गयी शायद अब किसी को
देता नहीं मुझको सदां आज कोई

गुमसुम सी शक्लें खामोश सारे होठ,
करेगा मेरा दर्द कैसे बयाँ आज कोई

यूं ग़मज़दा होकर सब बैठे हैं महफ़िल में,
हो गयी हो जैसे चाहत फ़ना आज कोई

क्यों लिपटा रखा है मुझे सफ़ेद चादर में इस तरह
हो गयी क्या मुझसे फिर खता आज कोई

- स्नेहा गुप्ता


Friday, April 13, 2012

खामखाँ सी ज़िँदगी






खामखाँ उन राहोँ

की रहगुज़र रखना

खामखाँ हर एक

बात की खबर रखना

खामखाँ की बातेँ

खामखाँ के सपने

खामखाँ पराए

लगने लगते हैँ अपने

फिर उनका यूँ बातेँ बनाना

और उसपर भी अंदाज़ शायराना

फिर करके गुस्ताखी

खामखाँ मुस्कुराना

ग़र मुमकिन नहीँ तकदीरेँ बनाना

खामखाँ फिर क्योँ तस्वीरेँ बनाना

शुक्र है खुदा का

हुई न मुलाकातेँ

खामखाँ बढ़ जाती

फिर ये सारी बातेँ

खामखाँ है फिर भी

इनका ज़ेहन मेँ आना

दुखती ज़िँदगी को

खामखाँ फिर दुखाना

हैँ बड़ी ही ये नाज़ुक

खामखाँ दर्द सहेँगी

टूटे सपनोँ की कड़ियाँ

जब आँखोँ को चुभेँगी

खामखाँ रो पड़ेँगी

खामखाँ ऐसी किस्मत

खामखाँ ऐसी चाहत

खामखाँ फिर किस्मत की

इनायत की हसरत

वे कहते हैँ किस्मत को

खामखाँ है सोचना

तकदीर को अपने ही

हाथोँ से तुम लिखना

खामखाँ ये उम्मीदेँ

बढ़ती ही गई

खामखाँ वे न समझे

कि मैँ हूँ वही

खामखाँ बन गई एक

कहानी अनकही हूँ

इक इंसान हूँ मैँ भी

फ़रिश्ता नही हूँ

खामखाँ ये लफ़्ज़

खामखाँ ये ग़ज़ल

खामखाँ सी ज़िँदगी

हो गई है आजकल



- स्नेहा गुप्ता

07/04/2012

09:30 P.M.