Wednesday, July 22, 2015

चाँद और ख्वाहिशें..

हवाओं में तैरो, आसमां से उतर आओ,
ऐ चाँद, कभी कभी ज़मीन पर भी नज़र आओ...


पलों में रूमानियत थोड़ी और बढ़ी है,
घड़ी दो घड़ी तो और ठहर जाओ...


सुनो, क्या गाती है एहसासों की धड़कन,
महसूस करोगे, थोड़े करीब अगर आओ...


सौदा मेरी नींद का, तुमसे, ख्वाहिशों के लिए,
चलो, अब मेरी हथेली में नज़र आओ...

- © Sneha Rahul Choudhary 


[फोटो साभार - गूगल]