"हाँ हाँ वही पर. फाइल नीचे वाली तह में है.. अच्छा ठीक है.. बाय..."
सानिध्या ने फ़ोन बंद किया तो उसका ध्यान अनुपमा के मुस्कुराते हुए चेहरे पर टिका. लगभग ठंडी हो चुकी कॉफ़ी का कप उठाकर उसने अनजान बनते हुए पूछा - "इस मुस्कराहट की वज़ह जान सकती हूँ?"
अनुपमा की मुस्कराहट थोड़ी बड़ी हुई और उसने कहा - "पिछले आधे घंटे में तुम्हारा फ़ोन चार बार बजा है. कभी फाइल, कभी घड़ी, कभी टैब ...."
"तो?" सानिध्या ने भी उसी अंदाज़ में जवाबी सवाल दागा.
"कुछ नहीं." अनुपमा बोली, "बस पुरानी बातें याद आ गयी थी."
"सोम की शर्त?"
सानिध्या का तीर सही निशाने पर लगा था जैसे. अनुपमा यह सवाल सुनते ही घबरा सी गयी.
"तुम्हे पता है इस बारे में?" उसने आश्चर्य से सानिध्या से पूछा.
"सब कुछ पता है..." अपनी उसी रहस्यमयी मुस्कान के साथ सानिध्या ने अपनी ठंडी कॉफ़ी का कप एक ही घूँट में खाली कर दिया.
"कुछ भी कहो... मगर यकीन नहीं होता कि यह पंद्रह-सोलह साल पहले की बात है...." अनुपमा ने सँभलते हुए कहा, "सोम ने बड़े यकीन से शर्त लगाई थी कि तुम दोनों के प्यार का खुमार कुछ महीनों में ही उतर जाएगा. मगर जब तुमने पिछली बार भी गेट-टुगेदर कैंसिल किया तो....."
"पिछली बार कई महीनों के बाद मोहित की छुट्टियाँ सैंक्शन हुई थी. हमने पहले से ही इसकी प्लानिंग कर रखी थी. गेट-टुगेदर का प्लान तो बाद में बना था..." अनुपमा की बात बीच में ही काट दी सानिध्या ने.
"देन इन दैट केस, थैंक्स फॉर कमिंग टुडे, मैडम." सानिध्या की खिंचाई की अनुपमा ने और दोनों सहेलियां हंसने लगी.
कुछ देर की हंसी के बाद जब अचानक खामोशी हुई तो अनुपमा ने कहा, "सच बताना सानिध्या, तुम्हें नहीं लगता कि तुमने बहुत ज्यादा कोम्प्रोमाईज़ किया है? मोहित का इस तरह हर छोटी छोटी चीज़ के लिए तुम पर डिपेंड होना? तुम्हे खीझ नहीं होती...?"
सानिध्या मुस्कुराई- "जानती हो अनुपमा, किसी की मोहब्बत बनना वाकई बेहद खूबसूरत एहसास होता है. लेकिन उससे भी ज्यादा खूबसूरत होता है किसी की आदत बन जाना...एक ऐसी आदत जिसका तुम्हे पता भी नहीं चल पता लेकिन तुम जिससे अलग होने की कल्पना भी नहीं कर सकते.... ये मेरी ज़िन्दगी का वृत्तचित्र है अनु, और इसे मैंने खुद बनाया है अपने खयालो से... तुम लोग ही तो कहते थे न कि मेरे ख़याल बेहद खूबसूरत होते है..."
तभी सानिध्या का फ़ोन फिर से बजा और तब उसके चेहरे पर अनुपमा ने जो मुस्कान देखी वो सचमुच दुनिया में सबसे ज्यादा खूबसूरत थी...
http://www.scribd.com/doc/181756127/Branwyn-Sep-Oct-2013
http://www.scribd.com/doc/181756127/Branwyn-Sep-Oct-2013
- स्नेहा गुप्ता
19/11/2013 08:30PM
Beautiful! :)
ReplyDelete:)
DeleteKhoobsurat! :)
ReplyDeletedhanyawaad :)
DeleteVery nice.
ReplyDeletethanks :)
DeleteA new perspective to see adjustment in married life; surely based on mutual love and respect. Congratulations Sneha ji.
ReplyDeleteThank you very much :)
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार को (20-11-2013) जिन्दा भारत-रत्न मैं, मैं तो बसूँ विदेश : चर्चा मंच 1435 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut bahut dhanyawaad Sir :)
Deleteलघु कथा में घटना कहाँ है ?सिर्फ परिवेश और संवाद हैं।
ReplyDeleteaage se dhyaan rakhungi...
DeleteBeautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading story
Very nice............. Sneha ji.
thanks sanjay ji :)
DeleteReally a nice story nd hope 'll continue this story
ReplyDeletethanks rohit jee :)
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया :)
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