Tuesday, August 2, 2016

एक प्यार ऐसा भी...

आकाश अपनी टाई बाँध रहा था जब उसकी पत्नी ने उससे पुछा, “सुनो, मैं मोटी हो गयी हूँ क्या?”

आकाश ने घूम कर देखा. उसकी पत्नी सुषमा अपने वेस्टकोट का बटन लगाने की कोशिश कर रही थी. शायद ये किसी भी पति के लिए आगे कुआँ और पीछे खाई वाली बात होती लेकिन आकाश ने कभी अपनी ज़िन्दगी में ऐसे पलों को हावी नहीं होने दिया था. उसने बिना किसी भाव के कहा, “तुम प्रोफेशनल हो. तुम बेहतर जानती हो.”

सुषमा ने अपने पति की ओर एक बार देखा और फिर चुपचाप अपना बैग निकालते हुए बोली, “आज मुझे ऑफिस छोड़ दोगे?”

“पहले बोलती.” आकाश बस निकलने को था, “आज कहीं जाना है मुझे.”

“ठीक है.” कहते हुए सुषमा तेजी से बाहर निकल गयी.

न सुषमा कुछ पूछती थी और न आकाश बताने की ज़रूरत समझता था.

शायद यही वज़ह थी सुषमा कभी जान नहीं पायी थी कि आकाश वंशिका को भूला नहीं था.

आकाश वंशिका की ऑफिस बिल्डिंग के बाहर था. सड़क के एक किनारे अपनी एंडेवर गाड़ी के अन्दर बैठा, ए.सी. ऑन किये उसके बाहर निकलने का इंतज़ार कर रहा था वह. यहाँ आने से पहले, कई बार उसके मन में यह ख्याल आया था कि इस तरह किसी शादीशुदा औरत का पीछा करना गलत है. लेकिन, नैतिकता की तमाम बातें उसके ज़ख़्मी दिल को सुकून दे पाने में नाकामयाब साबित हो रही थी. पांच साल बीत चुके थे. लेकिन वह उसकी कही हुई एक भी बात नहीं भुला था. अब भी उसके शब्द उसे चुभते थे.
ख्यालों में डूबते उतराते पांच साल पहले घटित हुई वह घटना फिर से उसकी आँखों के आगे तैर गयी जब उसके फ़ोन पर एक अनजान नंबर से फ़ोन आया था...

“हेल्लो, आकाश जी से बात हो सकती है?” एक घबराया हुआ स्त्री स्वर था.

“स्पीकिंग... हू इज दिस?” आकाश संभल कर जवाब नहीं दे पाया था.

“आकाश जी, मैं वंशिका बोल रही हूँ.” लड़की ने ज़ाहिर किया और उतनी हडबडाहट के साथ बोली, “मैं आपसे मिलना चाहती हूँ. आज ही. प्लीज़ बताइए, मिल सकते है?”

अब चौंकने की बारी आकाश की थी. “अरे वंशिका जी, आप? हाँ मिल सकते है लेकिन बात क्या है? आप इतनी घबराई हुई क्यों है?”

“मिलकर बताउंगी. लेकिन आपको मेरी कसम है, इस बारे में आप किसी से भी कुछ भी मत कहना. मैं आपको मैसेज करके बताती हूँ कि हमें कहाँ मिलना है.”

और इसके साथ ही फ़ोन कट गया था. चंद पलों बाद ही आकाश के फ़ोन पर उसी नंबर से मैसेज आया था जिसमे एक मामूली से रेस्तरां का पता दिया और मिलने का वक़्त दिया हुआ था.

आकाश भौचक्का सा था. जिस लड़की से उसकी शादी लगभग तय हो चुकी थी वह उससे इस तरह गुपचुप तरीके से मिलना चाहती थी और वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे यह बात अपने माँ बाप से कहनी चाहिए थी या नहीं. प्यार, मोहब्बत और रिश्तों के मामले में आकाश का स्वभाव एक पोखर के जैसा था. शांत लेकिन ज्यादा गहरा नहीं. वह एक बड़ी कंपनी में एक अच्छे पोस्ट पर था. ऐसा नहीं था कि उसकी नसों में खून के साथ संस्कार घुले हुए थे. दरअसल उसकी कभी ऐसी इच्छा ही नहीं हुई थी कि ज़िन्दगी में प्यार वाला एंगल होना ही होना चाहिए. धीर गंभीर स्वाभाव वाले आकाश में न तो कभी किसी लड़की ने दिलचस्पी दिखाई और न ही आकाश ने कभी अपने सिंगल होने का शोक मनाया. शायद परिवार के साथ रहने के कारण उसे किसी भी चीज़ की कमी नहीं खलती थी. उसे किसी चीज़ का शौक ही नहीं था.  प्यार और शादी को लेकर उसका यही नजरिया था कि सबके साथ ऐसा होता है इसलिए इसे इतना तवज्जो देने की ज़रूरत क्या है.

आखिरकार उसने वंशिका से मिलकर पूरी बात जानने के बाद ही कुछ करने का फैसला किया.

रेस्तरां आकाश की तबियत से कुछ ज्यादा ही गरीब था. जब आकाश वहां पहुंचा तो वंशिका वहाँ पहले से ही उसका इंतज़ार कर रही थी. पहली बार आकाश ने वंशिका को देखा था. यूँ तो कई बार उसकी माँ ने कहा था कि एक बार मिल लो लेकिन आकाश का वही जवाब था, “ज़रूरत क्या है. शादी ही तो करनी है. आपने देख लिया तो बस हो गया. मिल लूँगा किसी दिन. अलग से क्या वक़्त निकालू?”

आकाश ने गौर किया था कि वंशिका तस्वीरों से बिलकुल अलग थी. तस्वीरों में जहाँ वह गंभीर और घरेलु लगती थी वहीँ हकीकत में ठीक इसके उलट लग रही थी. उसने भूरे रंग की शर्ट और नीले रंग की जीन्स पहन रखी थी. कंधे से एक ऑफिस बैग लटका था और वह बेचैनी में उंगलियाँ तोड़ रही थी.

“आई एम् सॉरी. आई एम् लेट.” आकाश ने उस तक पहुँच कर बैठते हुए कहा.

“इट्स ओके.” वंशिका ने बिना किसी भूमिका के कहा, “आकाश जी, आप प्लीज़ इस शादी के लिए मना कर दीजिये. अगर ये शादी हुई तो हम दोनों की लाइफ बर्बाद हो जायेगी. मैं किसी और से प्यार करती हूँ. मैंने घर में सबको ये बात बताई है. लेकिन सब इसे मेरा बचपना मानते है. ऐसा नहीं है कि वो लोग उसे पसंद नहीं करते. एक्चुअली बात ये है कि आपकी हैसियत उससे बहुत ज्यादा है. मैं कुछ भी बोलती हूँ तो घर में सब मुझे दुनियादारी समझा कर चुप कर देते है. वह आपके जितना नहीं कमाता लेकिन जितना करता है वो मेरे लिए काफी से ज्यादा है. मेरे बहुत ज्यादा शौक नहीं है. बस ख़ुशी से और प्यार से रहना चाहती हूँ. अगर आप मना कर देंगे तो मैं घर वालों को उससे शादी करने के लिए मना लुंगी. प्लीज़, मेरी बात मान लीजिये.” वंशिका एक सांस में सब कुछ कह गयी.

ख़ामोशी से सब कुछ सुनने के बाद, आकाश ने एक लम्बी सांस ली और नज़र भर के वंशिका को देखा. न जाने क्यों उसके घरवालों ने जिस ‘बचपने’ की बात कही होगी वह उसके चेहरे पर नज़र आने लगी उसे. भला कौन सी ऐसी समझदार लड़की होगी जो महीने के लाखों कमाने वाले लड़के को छोड़कर अपने निरी हैसियत वाले प्रेमी के साथ शादी करना पसंद करेगी. आकाश को उसका भविष्य साफ़ नज़र आ रहा था. पैसे की तंगी और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के बीच अपने बच्चों का भविष्य तलाशती हुई थुलथुल सी औरत जो कभी प्यारी सी वंशिका हुआ करती थी. “खैर”, आकाश ने सोचा, “ऐसी बेवक़ूफ़ लडकियां, यही डीसर्व करती है.”

“ठीक है. मना कर दूंगा.” आकाश ने भी बिना किसी भूमिका के कहा.

“ओह्ह थैंक यू वैरी मच.” वंशिका ने चहक कर आकाश के दोनों हाथों को थाम लिया, “आप बहुत अच्छे है आकाश जी. मैं दुआ करुँगी कि आपको बहुत अच्छी पत्नी मिले. और प्लीज़ इस बारे में किसी से कुछ भी मत कहियेगा.” और इतना कहकर वह लगभग उछलती हुई बाहर चली गयी थी.

आकाश को कुछ महसूस हो रहा था. आहत सा, कुछ अपमानित सा... उसे यकीन नहीं हो पा रहा था कि वंशिका जो खुद एक बेहद साधारण लड़की है, उसे एक मामूली लड़के के लिए छोड़ देगी. उसे तो लगा था कि वंशिका ने कुछ स्पेशल करने के लिए उसे मिलने बुलाया होगा. या वह उसका ‘अटेंशन’ चाहती होगी. लेकिन उसने तो...

आकाश ने शादी के लिए मना कर दिया था. माँ ने पुछा तो कह दिया कि वंशिका उसके ‘स्टैण्डर्ड’ की नहीं है. कुछ दिनों तक घर का माहौल अजीब सा रहा लेकिन उसके बाद सब लोग सब कुछ भूल गए. सिवाए आकाश के... उसके पोखर जैसे शांत मन में उस मामूली सी लड़की ने पत्थर मारकर जो तरंगे पैदा कर दी थी उन्होंने उसे बेचैन कर दिया था. कहते है कि जब तक हमारी ज़िन्दगी में कोई चीज़ नहीं होती है तो कई बार उसकी कमी का एहसास भी नहीं होता. लेकिन एक बार उसका एहसास हो जाए तो उसे भुला पाना मुश्किल होता है. वंशिका के साथ बमुश्किल बिताये उन १५-२० मिनटों ने आकाश का चैन छीन लिया था. वह अक्सर सपने में देखता कि वंशिका रोते हुए उसके पास आई और अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगी और आकाश ने हँसते हुए उसे माफ़ कर दिया. लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ. आकाश बेचैनी से इस बात का इंतज़ार करता रहा कि वंशिका अपनी गलती की सजा पाकर उसके पास रोती हुयी आये... दिन, महीने और यहाँ तक की साल भी बीते लेकिन आकाश की बेचैनी कम नहीं हुई. शादी के बाद भी नहीं.. पत्नी सुषमा ने शुरूआती महीनों में पुरजोर कोशिश की कि उसका पति अपनी ज़िन्दगी में उसे भी जगह दे लेकिन नाकामयाब होने पर वह भी हताश होकर अपनी दुनिया में ही रहने लगी. आकाश के गंभीर स्वभाव ने किसी को भी कोई और वज़ह होने का आभास तक न होने दिया.

और आकाश इन सबसे बेखबर अपने छद्म अपमान को झेलता हुआ दिल ही दिल में जलता रहा. जब उसकी बेचैनी उसके बर्दाश्त के बाहर हो गयी तो उसने इन्टरनेट पर वंशिका की बर्बाद ज़िन्दगी का तमाशा ढूँढने की कोशिश की. लेकिन उसे मिली तो बस कुछ तस्वीरें जिनमे बेहद मामूली सी वंशिका एक बेहद मामूली से लड़के के साथ थी. आकाश को ये देखकर धक्का लगा कि वंशिका की आँखों में वही चमक थी जो उस वक़्त उसने देखी थी. “नहीं, नहीं... इन्टरनेट तो झूठी दुनिया है.” आकाश ने खुद को समझाया. उसने फैसला किया कि असलियत में अपनी गलती पर पछता रही वंशिका से मिलेगा और उसे दिलासा देगा.

और आज कई दिनों तक खुद को भरोसा दिलाने के बाद आखिरकार वह वंशिका के ऑफिस के बाहर उसका इंतज़ार कर रहा था. उसकी आँखें घड़ी पर गयी. ६ बजने में कुछ ही मिनट थे. वंशिका कभी भी बाहर निकल सकती थी.

और आखिरकार वंशिका बाहर निकली. आकाश को लगा जैसे वह उसी पांच साल पहले वाले रेस्तरां में पहुँच गया था. क्यूंकि वंशिका बिलकुल पांच साल पहले वाली वंशिका जैसी ही थी. बिलकुल उसी तरह की मामूली सी शर्ट और जीन्स पहने और बालों को पोनी बांधे वह एक ऑटो वाले को हाथ दे रही थी. आकाश उतर कर उससे मिलता उसके पहले ही वह ऑटो में बैठ कर चल पड़ी. आकाश ने उसका पीछा किया. ऑटो सबसे पहले एक प्ले स्कूल के पास रुका. वंशिका अन्दर गयी और ५ मिनट बाद एक २-३ साल के बच्चे को गोद में लिए निकली.

वंशिका का बच्चा!

आकाश को लगा कि जैसे आसमान फट पड़ा...

वंशिका बच्चे को लेकर वापस ऑटो में बैठी और कुछ दूर जाकर एक चाट वाले के पास रुक गयी. उसने ऑटो वाले को पैसे देकर विदा किया और बच्चे को गोद में लेकर उससे बाते करने लगी. बच्चा कभी उसके बालो से तो कभी उसकी उँगलियों से खेलता हुआ हंस हंस कर उसकी बातों का जवाब दे रहा था. इतनी देर में एक पल्सर मोटरसाइकिल वंशिका के पास आकर रुकी. बाइक सवार ने जब हेलमेट उतारा तो आकाश ने देखा कि ये वही मामूली सा लड़का था. बच्चा ने पिता को देखा तो उछल कर उसकी गोद में चला गया. पास रखी एक बेंच पर तीनों बैठे और एक दूसरे से बाते करने लगे. हवा चलने लगी थी और वंशिका की कुछ लटें बार बार उसकी आँखों में आकर फँस रही थी. वंशिका ने एक हाथ से चाट की प्लेट और दूसरे हाथ से बच्चे का बैग पकड़ रखा था. तभी आकाश ने देखा कि लड़के ने वंशिका के बैग में से क्लिप निकाली और उसके बालों को तरतीब कर दिया.

लड़के ने जिस हक़ और दुलार से वंशिका के बालों को संवारा था, जब आकाश ने उसे महसूस किया तो उसे लगा कि जैसे उसके हाथ अचानक से काँप रहे है. तीनों अब भी एक दूसरे से बातें करने में मशगूल थे. वंशिका बच्चे को कुछ खिला रही थी और उसका पति उसे खिला रहा था.

आकाश ने अपनी गाड़ी में लगे शीशे में खुद को देखा. उसे लगा कि उसका विकृत सा चेहरा अब धीरे धीरे सामान्य हो रहा था.

आकाश ने अपनी गाड़ी मोड़ी और चलने से पहले बेहद मामूली सी वंशिका और उसके बेहद मामूली से परिवार को देखा. वही पांच साल पहले वाली हंसी... वही चहक.. एक मामूली से चाट वाले से मामूली सी चाट खाकर खुश होता एक बेहद मामूली सा परिवार... उसने गौर किया कि यह वंशिका पांच साल पहले वाली वंशिका जैसी नहीं दिख रही थी. इस वंशिका के चेहरे पर पांच साल पहले वाली वंशिका से ज्यादा चमक थी.

आकाश को महसूस हो रहा था कि उसकी हैसियत वंशिका से बहुत बहुत नीचे है...

सुषमा ऑफिस से निकल रही थी कि फ़ोन बजा. आकाश का था. शादी के इन छः महीनों में उसके पति ने आज तक कभी भी उसे फ़ोन नहीं किया था. अनहोनी की आशंका से उसने घबराकर फ़ोन उठाया, “हेल्लो, क्या हुआ?”

“ऑफिस से निकल गयी हो क्या?” आकाश का सवाल था.

सुषमा ने महसूस किया कि आकाश के लहजे में एक अजीब सा सुकून था. उसने धीरे से कहा, “नहीं, बस निकल रही हूँ.”

“रुको, मैं लेने आ रहा हूँ.”

सुषमा के कानों में जैसे ही ये शब्द पड़े उसे लगा कि शायद वो सपना देख रही है. उसकी तन्द्रा टूटी जब आकाश ने दुबारा पूछा, “सुनो, मैं सोच रहा था कि आज बाहर डिनर करते है. तुम्हे क्या पसंद है...?”

[चित्र: गूगल से साभार]


-   - © स्नेहा राहुल चौधरी 

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-08-2016) को "हम और आप" (चर्चा अंक-2423) पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर :)

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  2. बहुत अच्छा संदेश छिपाये हुए स्वाभाविक सी कहानी के लिये बधाई और धन्यवाद. सहजता इतनी कि लगता नही कि कोई कहानी है - आकाश, वंशिका और सुषमा अपने आस-्पास के ही कोई परिचित लगते हैं. ये बहुत लोगों के साथ होता है कि जो है, उसमे न रम कर उसके पीछे उसका पीछा करते हैं जो छूट चुका है - जो कभी स्वेच्छा से छोड़ा है तो कभी सामर्थ्य न होने से. काश ! जैसे आकाश को समझ आयी, वैसे ही हर ऐसे को आये.

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    1. धन्यवाद राज सर! आपने पसंद किया.. लिखना सार्थक हो गया.

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  3. over all supb........beautiful lines, nice character taken.....
    Go ahead Sneha jiwith beat wishes

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  4. सहज लिखी ... संबंधों की कहानी ...

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  5. मन की इस स्थिति को आप ने शब्दों में बड़ी ही खूबसूरती से बाँधा है..बहुत मुश्किल है कोई एक राह चुनना या अलग एक पगडंडी बना लेना..यह स्थिति जब तक समझ आती है बहुत देर हो जाती है.... संदेश छिपाये हुए कहानी

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    1. संजय जी, इस खुबसूरत प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद :)

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मेरा ब्लॉग पढ़ने और टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.