Saturday, May 18, 2013

आक्रोश


सल्फास खाकर जिंदा हैं
अजी, हम बड़े शर्मिन्दा हैं

जामों के छलकते बाँध में
डीयोडेरेंट की सड़ांध में
कूल डूड हॉट बेब हैं
मॉडर्निटी की छलकती पाजेब हैं
जज्बातों का बाज़ार है
इमोशनल अत्याचार है
दुःख का सीज़न गर्म है
दिल भी बड़ा ही नर्म हैं
महंगाई की चौहरी मार है
ईमानदारी भी बेरोजगार है
किरकेट का इसमें मेल नहीं
आई पी एल कोई खेल नहीं
अब मिलता कहाँ सुकून हैं
विश्वास का हो गया खून हैं
सच्चाई की चप्पल घिस रही है
चूल्हे में ममता पिस रही है
ऊपर शानदार मकान हैं
नीचे कोयले की खान हैं
रेलगाड़ी भी चल रही हैं
खूब पैसे उगल रही है
देखिये, कितना सज्जन ‘फेस’ है
वैसे सी.बी.आई. में दर्ज केस है
मगर पिंजरे में बंद परिंदा हैं

तेरे कातिल अभी तक जिंदा हैं
दामिनी, हम बड़े शर्मिन्दा हैं

-  -  स्नेहा गुप्ता  
  18/05/2013 8:25pm

Friday, May 3, 2013

दिवास्वप्न की पाती.....


सुनो,
तुम डराया न करो मुझे इस तरह..
मुझे डर लगता है
कभी तुम्हारी आँखों से
कभी तुम्हारी बातो से

फिर भी तुम्हे जानना चाहती हूँ
तुम्हे समझना चाहती हूँ
मुझे जानने दो
तुम्हे
समझने दो
तुम्हे सोचना मुझे अच्छा लगता है..


मैंने तुम्हे बताया नहीं कभी
तुम एक रहस्यमयी किताब से हो
तुम्हे पढ़ लेना चाहती हूँ
लेकिन अचानक नहीं
बल्कि हर पन्ना हर रोज़
थोड़ा थोड़ा करके
तुम्हे पढना मुझे अच्छा लगता है

मैंने तुम्हे बताया नहीं कभी
तुम एक बहुघातीय समीकरण से हो
कभी तुम्हे सुलझा लेना चाहती हूँ
कभी यूं ही उलझ कर रह जाना चाहती हूँ
सुलझ कर उलझ जाना मुझे अच्छा लगता है

मैंने तुम्हे बताया नहीं कभी
कि तुम धुंध कि तरह छाये हो मेरी ज़िन्दगी में
और
धुंध में भटकना मुझे अच्छा लगता है

मैंने तुम्हे बताया नहीं कभी
कि मैं जानती हूँ
कि तुम कभी सुनोगे भी नहीं
कभी पलटकर देखोगे भी नहीं
फिर भी तुम्हे पुकारना मुझे अच्छा लगता है

मैंने तुम्हे बताया नहीं कभी
कि मुझे मालुम है
कि तुम्हारी चाहत वो हसीं दुनिया है
जो तुम्हारे आगे है
और तुम्हारी ख़ुशी में ही खुश होना मुझे अच्छा लगता है

मैंने तुम्हे बताया नहीं कभी
कि ऐसे सैकड़ो ख़त मैंने लिख डाले है तुम्हे
जो तुम कभी पढोगे भी नहीं
और मेरे अलावा कोई तुम्हे लिखेगा भी नहीं
फिर भी ...........
.............. अच्छा लगता है......



 - स्नेहा गुप्ता
 03/05/2013 09:30PM