Friday, April 26, 2013

बेवफा ज़िन्दगी .....


अब भी तो कुछ रहम कर ऐ बेवफा ज़िन्दगी
दे रही किस बात की तू सज़ा ज़िन्दगी

सांस लेना भी क्या अब गुनाह हो चला है
हो रही क्या मुझसे यही खता ज़िन्दगी..

ख़ुशी में खुश होने का भी हक दिया नहीं तूने
क्यों करती रही हरदम ज़फ़ा ज़िन्दगी

निचुड़ी हुई आँखे और होंठ बेबस मुस्कुराने को
क्यों ऐसी रही तेरी बेदर्द अदा ज़िन्दगी

बेरहम, तू उसे आने भी तो नहीं देती
कि मौत आये और तेरा हर सितम हो फना ज़िन्दगी 



-    स्नेहा गुप्ता
26/04/2013 11:00pm

Sunday, April 21, 2013

मैं और मेरी ज़िन्दगी.....


बिगड़ती है, संवरती है, ठुकराती है, अपनाती है
इस तरह ज़िन्दगी मुझे जीना सिखाती है

देकर कुछ लम्हे हंसी के, ख़ुशी के
ज़ख्म कोई नया ये फिर दे जाती है

खुद ही हंसती है मेरी बेबसी पर
और खुद ही मेरे ज़ख्म सहलाती है

कभी कभी एक अजनबी सी दुनिया दिखाती 
तो कभी बचपन की सहेली सी नज़र आती है

चमकेंगे निकलकर गर्दिश से ये तारे
मैं इसे समझाती हूँ, ये मुझे समझाती है

चल ढूंढे अपनी ज़मीन अपना आसमान
ख्वाबों के शहर में मुझे खींचकर ले जाती है

बस कुछ पल के साथ को ही दुनिया में मिलते है सभी
अकेली मैं रह जाती हूँ, अकेली यह रह जाती है ...

-   -  स्नेहा गुप्ता
21/04/2013 5:10PM