क़त्ल कर दो उसका जिसका तुम्हे अंदाज़ पसंद नहीं
जला डालो अंजाम को जब आगाज़ पसंद नहीं
नोंच डालो उन परिंदों के पर
खुली हवा में जिनकी परवाज़ पसंद नहीं
हलक से खींच लो उस ज़ुबान को
जिस हलक से निकली आवाज़ पसंद नहीं
उसे ठोकर मारो ऐसी कि फिर सर कभी न उठ सके
ग़र खुद्दारी से जीने का उसका मिज़ाज पसंद नहीं
मत पूछो मेरे इन ज़हरीले अल्फाजों की वज़ह
इस ज़िन्दगी में मुझे कोई हमराज़ पसंद नहीं
- स्नेहा गुप्ता
21/01/2013
00:45 A.M.