Monday, January 21, 2013

ज़हरीले अल्फाज ....

क़त्ल कर दो उसका जिसका तुम्हे अंदाज़ पसंद नहीं 
जला डालो अंजाम को जब आगाज़ पसंद नहीं 

नोंच डालो उन परिंदों के पर 
खुली हवा में जिनकी परवाज़ पसंद नहीं 

हलक से खींच लो उस ज़ुबान को 
जिस हलक से निकली आवाज़ पसंद नहीं 

उसे ठोकर मारो ऐसी कि फिर सर कभी न उठ सके 
ग़र खुद्दारी से जीने का उसका मिज़ाज पसंद नहीं 

मत पूछो मेरे इन ज़हरीले अल्फाजों की वज़ह 
इस ज़िन्दगी में मुझे कोई हमराज़ पसंद नहीं 

- स्नेहा गुप्ता 
21/01/2013
00:45 A.M.

Saturday, January 5, 2013

ज़िन्दगी में इस क़दर कोहरा घना है .....

ज़िन्दगी में इस क़दर कोहरा घना  है
क्या पता कौन दोस्त कौन दुश्मन बना है

क्या कहूँ किसने मेरे दिल पर वार किया
यहाँ तो हर हाथ मेरे ही खून से सना है

मेरी चुप्पी को हरगिज़ न समझिये मेरी नाराज़गी
दरअसल यहाँ मेरा मुस्कुराना भी मना है

मालूम नहीं इनमे कहाँ खो सी गयी है वो
मुझे इन लम्हों में से ज़िन्दगी को छाँटना है

ये मेरी ग़ज़ल पढ़कर जाने क्यों खामोश है वो
मैं समझूँ तारीफ़ मगर ये वक़्त की आलोचना है

- स्नेहा गुप्ता