Sunday, November 29, 2015

वादा...

मुझे अपना एक-एक कदम एक-एक मील सरीखा महसूस हो रहा था. बमुश्किल बीस मिनट दूर जेम्स का घर मुझे कई सदियों दूर महसूस हो रहा था. मुझे समझ में नहीं आ रहा था आखिर जेम्स को सब कुछ बताते हुए मैं उसका सामना कैसे करुँगी. पता नहीं ये सब कुछ जेम्स झेल भी कैसे पायेगा...

बूंदाबांदी जारी थी. केरल में तो ये आम बात ही थी. लेकिन एक दिन पहले जो तूफ़ान आया था उसने मेरी और जेम्स की ज़िन्दगी को तबाह कर दिया था... मैं अनमनी सी चली जा रही थी बस ये सोचते हुए कि ये रास्ता कभी ख़त्म न हो...

जेम्स का कॉटेज सामने नज़र आने लगा था. मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी अन्दर जाऊ. पिछली रात के तूफ़ान में सड़क के इस पार एक पेड़ गिर पड़ा था. मैं उसकी ही एक शाखा पर बैठ गयी थी. सोच नहीं पा रही थी कि आखिर जेम्स से कहूँगी तो क्या... “जेम्स, मुझे माफ़ कर दो. मैं अपना वादा नहीं निभा पायी...” ... “जेम्स, तुम्हे इस तरह उसे अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहिए था...”
मुझे लग रहा था मेरा सर फट जाएगा.

इससे पहले कि कुछ और सोच पाती, मेरा मोबाइल बज उठा. मैंने देखा – “जेम्स कालिंग...”

खुद पर पूरा नियंत्रण रखते हुए मैंने अपने आंसू पोंछे और फ़ोन उठाया, “हेल्लो...”

“हेल्लो, शिन्नी...! वहाँ क्या कर रही हो...? अन्दर आओ. बारिश में क्यों भींग रही हो?” जेम्स की आवाज़ थी... सारे जहाँ की खुशियाँ समेटे हुए... ज़िन्दगी की उमंग और चाहत से भरपूर... मुझे आश्चर्य नहीं हुआ था जब मिली ने बताया था, “वी आर सीइंग ईच अदर, यू नो...”
बस दुःख हुआ था...

“हेल्लो... हेल्लो... शिन्नी... देखो तो सामने...”
मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने देखा था कि जेम्स दरवाज़े पर खड़ा होकर हाथ हिलाते हुए मेरा ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था. जैसे ही मैंने उसे देखा, उसने फ़ोन काटकर अन्दर आने का इशारा किया.
अब मैं और नहीं भाग सकती थी...

मैं जैसे ही पास पहुंची, जेम्स ने झपट कर मुझे गले लगा लिया.

“ओह शिन्नी... शिन्नी...! मैंने तुम्हें... तुम सबको कितना मिस किया...”
वह बोले जा रहा था और मैं काठ हो गयी थी. सोच ही नहीं पा रही थी अगर उसे सच्चाई बता दूँ तो क्या उसकी खुशियों की कातिल नहीं कहलाउंगी. उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा देखकर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा था.

“आज सुबह ही तुम्हारे घर आना चाहता था. फ़ोन किया था पर तुमने उठाया नहीं तो सोचा बाद में मिल लूँगा...”

मैं क्या बताती उसे.. कि मैं घर पर नहीं कब्रिस्तान में थी.

हम अन्दर आ गए थे और अन्दर घुसते ही मेरा कलेजा टूक टूक हो गया. पूरे घर में सिर्फ मिली ही छायी हुई थी. दीवारों, दरवाजों, मेजो, कुर्सियों.. हर जगह सिर्फ उसकी ही छाप नज़र आ रही थी. लग रहा था कि अब किसी तस्वीर से मिली खिलखिलाती हुई बाहर निकल आएगी. सर घूम रहा था. मैं पास ही एक कुर्सी पर बैठ गयी. पूरे घर में जैसे उसकी खुशबू फैली हुई थी. लग रहा था कि अब किसी कमरे से उसकी खनकती हुई आवाज़ शिकायतों के साथ बाहर आएगी, “देखो न शिन्नी, पूरे घर को कबाड़ बना दिया है. सोचो, शादी के बाद मैं कैसे रहूंगी इस कबाड़खाने में. अगर हर सन्डे साफ़ सफाई न करूँ, तो पता चला किसी दिन मुनिसिपैलिटी वाले ये पूरा घर ही ले जायेंगे.”

“शिन्नी... शिन्नी...” जेम्स ने मेरा कन्धा हिलाया, “क्या हुआ?”

“क.. कुछ नहीं.” मैंने खुद को संभाला, “जेम्स, कुछ बताना है तुम्हे.”

“अभी नहीं.’ जेम्स ने मेरी बात काट दी. “पहली मेरी बनायीं हुई कॉफ़ी पीकर फ्रेश हो लो, फिर करेंगे ढेर सारी बातें.”

और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना ही जेम्स किचन में चला गया. मुझे हर चीज़ अजीब लग रही थी. सबसे ज्यादा अजीब ये बात थी कि जेम्स ने अभी तक एक बार भी मिली के बारे में नहीं पूछा था. वरना तो हर वक़्त मिली मिली मिली... उस दिन क्या हो गया था उसे. वो कुछ ज्यादा ही कूल और रिलैक्स लग रहा था.

मैं उसके बारे में ही सोच रही थी कि वह कॉफ़ी ले आया. “ये लीजिये मैडम! गरमागरम कॉफ़ी...” वही गर्मजोशी... वही अंदाज़... चेहरे पर या आवाज़ में ज़रा भी शिकन नहीं. अबिम ने मुझे बताया था पिछली रात से जेम्स से उसकी बात नहीं हुई थी. जेम्स था तो बिलकुल सही लेकिन उसका मिली की खोज खबर न लेना अखर रहा था.
अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती थी. मुझे उसे सब कुछ बताना था. वह कॉफ़ी मेज पर रख कर अपना सामान अनपैक करने में लग गया था.

“जेम्स, यहाँ बैठो.” मैंने उसे आवाज़ लगाते हुए सामने रखी कुर्सी खींच ली थी.

“हाँ, बोलो.” जेम्स ख़ुशी से मेरे पास आकर बैठ गया. फिर खुद ही कहने लगा, “सॉरी यार, पूरा सामान बिखरा हुआ है. आज सुबह ही आया पर कुछ कर नहीं पाया...”

“जेम्स,’ मैंने उसकी बात काट दी, “मिली... मिली नहीं रही...” मेरे हाथ कांपने लगे. मुझे लग रहा था कि मैंने उसका सामना नहीं कर पाउंगी. मैंने नज़रे झुका ली, “कल रात को बहुत तेज़ तूफ़ान आया था. कल शाम को मिली ये कहकर निकली कि वह तुम्हें बहुत मिस कर रही थी इसलिए कुछ वक़्त अकेले नेवल कैंप के पास वाले ‘बीच’ पर गुज़ार कर जल्दी लौट आएगी. लेकिन बारिश तेज़ हो जाने के बाद भी जब देर रात तक वह नहीं आई तो हम सब उसे ढूँढने निकले. आज सुबह तीन बजे हमें उसकी लाश दो किलोमीटर दूर मिली. हम अभी सेमेट्री से ही...” इसके आगे नहीं बोल पायी थी मैं. गला रुंध गया था. लाख रोकने के बाद भी आंसू बह निकले. और आख़िरकार बाँध टूट गया और मैं बिलख बिलख कर रोने लगी.

“जानता हूँ.”
ये जेम्स की आवाज़ थी. बेहद ठंडी और भावशून्य...
मैं अवाक रह गयी...
“जेम्स...” आगे कुछ कह नहीं पायी मैं...
“मुझे मालुम है कि मिली मर गयी.” जेम्स ऐसे बोलने लगा जैसे मिली उसकी कोई न लगती थी, “आज सुबह ही पता चल गया था मुझे. अरे यार! जो पैदा होता है वो मरता भी है. मिली भी मर गयी तो कौन सा पहाड़ टूट गया. सुबह से मुझे दिलासा दे देकर लोगो ने मूड ऑफ कर रखा है. मिली मरी है... मैं तो नहीं मरा न.. डिसगस्टिंग...”

“तुम... तुम जल्लाद हो जेम्स...” मैं आपा खो बैठी, “जिस लड़की पर अपनी जान लुटाते थे... आज उसके मरने पर तुम्हें अफ़सोस तक नहीं हो रहा... कोई किसी के साथ टाइम पास भी करता है न तो उसकी मौत पर दुखी हो जाता है... लेकिन तुम जैसा सेल्फिश आदमी शायद ही दुनिया में हो... मिली कितना प्यार करती थी तुमसे... तुम इंसान नहीं हो सच... हैवान हो... शैतान हो...”

“बस!” जेम्स चिल्लाया, “मेरे घर में मुझ पर ही चिल्लाने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?”

“नहीं रहना मुझे यहाँ...” मैं भी तैश में आ गयी थी, “मुझे तुमसे कोई रिश्ता भी नहीं रखना... शर्मिंदगी होती है कि कभी मैं तुम्हे अपना बेस्ट फ्रेंड मानती थी...”

उसके बाद मैं रुकी नहीं. दनदनाते हुए उसके घर से निकली और बारिश में ही भींगती हुई अपने कॉटेज में वापस आ गयी. दरवाज़ा बंद किया और औंधे मुंह बिस्तर पर गिर पड़ी. सामने टेबल पर एक तस्वीर थी... हमारी यादों की तस्वीर... हम तीनों साथ थे उसमे... मैं, मिली और जेम्स...

जो कुछ भी हुआ था उस दिन यकीन नहीं होता कि वो सपना था या हकीकत... मिली की मौत और जेम्स की बेरुखी... मेरी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गयी थी. और मेरी दुनिया में था भी कौन जेम्स और मिली के अलावा... चार साल की उम्र से मदर मरियम अनाथाश्रम में साथ साथ रहे थे हम और जेम्स. एक साथ खेले, कूदे और बड़े हुए... सिस्टर ग्रेस की बदौलत मुझे और जेम्स को अच्छी पढाई मिली और बाद में नौकरी भी. मेरी दुनिया में बस जेम्स ही था. बेस्ट फ्रेंड्स थे हम दोनों. मैंने कभी सोचा ही नहीं था कि इसके आगे भी दुनिया होती है. फिर एक दिन हम दोनों की छोटी सी दुनिया में मेरिलिन आई. वह जेम्स के साथ काम करती थी. उसका भी दुनिया में कोई नहीं था. शायद एक अकेलेपन के दर्द का रिश्ता था जिसने हम तीनो को जोड़ दिया. फिर मेरिलिन मिली बन गयी. और जब मिली ने मुझे बताया कि जेम्स से उसका अफेयर चल रहा था तो मुझे लगा कि जैसे अन्दर कुछ टूट गया था. मैंने कभी जेम्स से शादी करने के बारे में नहीं सोचा था. लेकिन जब मुझे महसूस हुआ कि अब उसकी ज़िन्दगी में कोई और लड़की होगी जो मुझसे ज्यादा अहमियत रखेगी तो मुझे लगा जैसे ज़िन्दगी में मेरा एक ही खज़ाना था जो मेरा नहीं रहा. मेरा और जेम्स का रिश्ता न तो दोस्ती था और न ही प्यार. हम दोनों का रिश्ता दोस्ती और प्यार से बहुत ऊपर था... इसका कोई नाम नहीं था... ये एक ऐसा रिश्ता था जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता था... लेकिन जब मैंने जेम्स की आँखों में मिली के लिए वो खुशनुमा एहसास देखा तो मुझे इतनी ख़ुशी हुई जितनी शायद अपने लिए भी कभी नहीं हुई थी... फिर मैंने भी दिल की सारी गिरहें खोलकर मिली का स्वागत किया और जल्द ही मैं और मिली एक साथ शिफ्ट हो गए. जेम्स के अलावा एक अबिम था जो मेरी फ़िक्र करता था. और कुछ वक़्त बाद मैंने भी उसे नज़र अंदाज़ करना बंद कर दिया था. मैंने महसूस किया था अबिम वाकई मेरी परवाह करता था.
जेम्स मिली पर जान लुटाता था. और मिली भी उसपर दिलोजान से फ़िदा थी. जो भी उन्हें देखता उनके प्यार की कसमें खाता. मुझे याद है मिली के जन्मदिन पर जेम्स ने मुझसे पूछा था कि वह उसे क्या गिफ्ट दे. मैंने मोतियों का एक ‘नेकलेस’ ‘सज्जेस्ट’ किया था. और जेम्स बेवकूफी में नकली मोतियाँ ले आया था. खूब हँसे थे फिर हम तीनों... जेम्स ने कहा था कि वह मोतियाँ बदल कर ले आएगा. लेकिन मिली ने मना कर दिया था... वह ‘नेकलेस’ उसे दिल से भा गया था... और क्यों न भाता... आखिर जेम्स का दिया हुआ तोहफा जो था... वह एक पल को भी उस नेकलेस को खुद से अलग नहीं करती थी...

कितना चाहती थी वो जेम्स को... और क्या सिला दिया जेम्स ने उसे...

रोते रोते मेरी आँख कब लग गयी थी मुझे पता नहीं चला था. दरवाज़े पर हो रही खटखट से नींद खुली थी. दरवाज़ा खुला तो मैंने देखा सामने जेम्स था. उसका ये रूप देखकर मैं डर गयी थी. लाल लाल सूजी हुई आँखें और अजनबी सा चेहरा... मुझे लगा जैसे वह काफी देर से घर के बाहर भींग रहा था. मगर अचानक से मुझे उसका रूखा हुआ ‘बिहेविअर’ याद आया और मैंने उसे झिड़क दिया, “क्या करने आये हो यहाँ?”

“लोग झूठ कहते है तो मुझे अच्छा नहीं लगता शिन्नी.” बेहद ठंडी आवाज़ में वह बोला, “मिली मरी नहीं है...”

उसकी आवाज़ इतनी सर्द थी कि एकबारगी मेरी कंपकंपी छूट गयी. उसे देख-सुन कर ये साफ़ साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि वह अपने होश में नहीं था. यकीन नहीं हो रहा था कि सुबह मैं इसी जेम्स से लड़कर आई थी. वह बुरी तरह भींगा हुआ था मगर लग रहा था जैसे उसे कुछ महसूस ही नहीं हो रहा था. उसकी हालत देखकर मेरा कलेजा मुंह को आ गया. मैं एक दोस्त को खो चुकी थी और दूसरे को हरगिज़ खोना नहीं चाहती थी.

“अन्दर आओ जेम्स...” मैंने उसे बुलाया और वह बिलकुल एक छोटे बच्चे की तरह मेरे पीछे पीछे अन्दर आ गया. उसकी हालत खुद बखुद पुकार रही थी कि वह अपने होश में नहीं था.

मैंने उसे पकड़ कर कुर्सी पर बिठा दिया और एक तौलिये से उसका सर पोंछने लगी. वह खामोश नहीं था. बस अपनी ही धुन में बोले जा रहा था – “ मैंने मिली से वादा किया था कि मैं कल ही आ जाऊँगा. और आऊंगा तो सबसे पहले उससे ही मिलूँगा. मैंने ही उससे कहा था कि वह नेवल कैंप के पास वाले ‘बीच’ पर मेरा इंतज़ार करे. उसने अपना वादा निभाया था, शिन्नी. वह आई थी मुझसे मिलने. बस मैं नहीं पहुँच सका. लेकिन जानती हो शिन्नी? मैंने उससे कहा था कि अगर मैं उससे कल नहीं मिल पाया तो अगले दिन ज़रूर मिलूँगा.”
मैं खामोशी से उसकी बात सुन रही थी. लेकिन अचानक वह बेचैन हो उठा.

“शिन्नी... शिन्नी... तुम मेरे साथ चलो. वह बीच पर ज़रूर आई होगी.वह उठकर खड़ा हो गया और मेरा हाथ पकड़ कर दरवाज़े की तरफ चल पड़ा.

मैं अचानक से बदले उसके इस बर्ताव को समझ नहीं पायी. मैंने उसे रोकने की कोशिश की, “जेम्स रुक जाओ. मिली मर चुकी है. वो भला अब ‘बीच’ पर कैसे आ सकती है? होश में आओ जेम्स.” मैंने उसे झकझोरा.

“नहीं...!” जेम्स जोर से चिल्लाया, “मिली मरी नहीं है. जिंदा है वो... हरपल उसे महसूस करता हूँ मैं.” वह काँप रहा था... पता नहीं सर्दी से या गुस्से से... “जब लोग उसकी मौत का मातम मनाते है तो मुझे बहुत गुस्सा आता है. दिल करता है सबको मार डालू मैं... मरी नहीं है मिली. मर कैसे सकती है वो..? कैसे अपना वादा तोड़ सकती है?” वह हांफने लगा था. फिर मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए बाहर ले जाने लगा, “चलो, मैं तुम्हे मिली से मिलवाता हूँ. वो जिंदा है और ज़रूर मेरा इंतज़ार कर रही होगी..”

“रुको जेम्स.” मैंने उसे रोकने की कोशिश कि लेकिन उसने परवाह नहीं की.

वह मुझे खींचते हुए बाहर ले आया. बारिश रुक चुकी थी. बस बूंदाबांदी हो रही थी. लेकिन वह रुका नहीं. मुझे खींचते हुए ‘बीच’ की तरफ ले जाने लगा और रास्ते भर बुदबुदाता रहा, “मर कैसे सकती है मिली? हरपल उसे महसूस करता हूँ मैं... मेरे चारो तरफ है वो.”

मैं बस उसके पीछे चलती जा रही थी और कोशिश कर रही थी उसकी हालत समझ सकू. मुझे डर लग रहा था कि कहीं जेम्स पागल न हो जाए.

आखिरकार हम ‘बीच’ पर पहुँच गए. जेम्स ने घड़ी देखकर कहा, “सात बज गए है. वह आती ही होगी.”

मैं खामोश थी और उम्मीद कर रही थी कि थोड़ी देर बाद जेम्स फूट फूट कर रोये और उसका गुबार बाहर निकल जाए.
मगर ऐसा हुआ नहीं. ‘बीच’ पर अजीब सी शान्ति छाई रही. यकीन नहीं हो रहा था कि बस एक दिन पहले ही वहाँ तूफ़ान आया था जिसने मिली की जान ले ली थी. उस दिन समंदर भी जैसे मिली को निगल कर शांत हो गया था.

कुछ ही मिनट बीते थे कि अचानक तेज़ आवाज़ हुई और समंदर से एक बहुत बड़ी लहर किनारे की तरफ उठी. मैं हैरान थी कि अचानक शांत पड़े समंदर में इतनी बड़ी लहर कहाँ से आ गयी. मैंने घबरा कर जेम्स को पीछे की तरफ खींचने की कोशिश की.
लेकिन टस से मस नहीं हुआ. उल्टा उसने बाँहे फैला दी और आँखें बंद कर के बेहद शांत आवाज़ में बोला, “मेरी मिली आ गयी...”

मैं डर गयी और जोर से चिल्लाई, “जेम्स पागल मत बनो. चलो यहाँ से.” उसे खींचने की मेरी सारी कोशिशें बेकार हो रही थी.

लेकिन जेम्स तो जैसे दूसरी ही दुनिया में चला गया था. बेहद ठंडी आवाज़ में बोला, “तुम घर जाओ, शिन्नी... मैं मिली के साथ जाऊँगा...”

इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती, पानी की तेज़ लहर ने मुझे दूर तक पटक दिया. मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया...

मैं कितनी देर तक बेहोश रही मालुम नहीं. लेकिन जब मेरी आँख खुली तो समंदर में पहले की तरह ही मुर्दानगी जैसी शान्ति थी. आसमान साफ़ हो गया था और चाँद की रौशनी पानी में चमक रही थी. लेकिन जेम्स का दूर दूर तक कोई पता नहीं था.

मैं पागलों की तरह जेम्स जेम्स चिल्लाते हुए उसे ढूँढने लगी लेकिन वह कही नज़र नहीं आया. मुझे लग रहा था कि बस एक ही पल में मेरी दुनिया उजड़ गयी थी. जो दो लोग मेरे सबसे ज्यादा करीब थे वो मुझसे हमेशा के लिए बहुत दूर चले गए थे. मैं रोते रोते वहीँ गिर पड़ी. तभी अचानक मेरी नज़र एक चमकती हुई चीज़ पर पड़ी. मैंने उसे उठाकर देखा...

वो नकली मोतियों की माला थी जो चाँद की रौशनी में चमक रही थी...

चित्र : गूगल से साभार 



© स्नेहा राहुल चौधरी 
29/11/2011 9:20pm

Wednesday, September 23, 2015

मोहब्बतें...

तुम्हें बहुत शिकायतें है न...?
कि मैं प्यार नहीं करता
तुमसे
कि मैं ध्यान नहीं रखता
तुम्हारा
कि मैं वक़्त नहीं निकालता
तुम्हारे लिए


मेरा अपनी चीज़ों को बिखेर देना
ताकि तुम उन्हें संवारो...
कुछ ज़रूरी काम भूल जाना
ताकि तुम याद दिलाओ...
तुम्हें बेवज़ह सताना,
कि मैं मनाऊं जब तुम रूठ जाओ...
तुम जानती हो न
कि ये प्यार नहीं तो क्या है....?


है तुम्हें पता और मुझे भी
कि रूमानियत कोई तोहफा नहीं है
कि ये कोशिश है एक आम ज़िन्दगी के
कुछ आम पलों को ख़ास बनाने की
एक दूसरे को अपनी ज़रूरत का एहसास दिलाने की


है तुम्हें पता और मुझे भी
कि रूमानियत कोई ज़िद नहीं है
कि ये तो बस एक विकल्प की चाह है
एक आम ज़िन्दगी से ऊब जाने की
या उसे प्यार से भरकर उसमे डूब जाने की


तो फिर कहो
कि तुम्हारी शिकायतें
तुम्हारी बेपनाह चाहतें है न...!
कि मेरी ये बेपरवाही
मेरी शरारतें है न...!
कि कुछ आम सी मगर बेहद खास
अपनी मोहब्बतें है न...!

© स्नेहा राहुल चौधरी 


[चित्र - गूगल से साभार ] 

Wednesday, July 22, 2015

चाँद और ख्वाहिशें..

हवाओं में तैरो, आसमां से उतर आओ,
ऐ चाँद, कभी कभी ज़मीन पर भी नज़र आओ...


पलों में रूमानियत थोड़ी और बढ़ी है,
घड़ी दो घड़ी तो और ठहर जाओ...


सुनो, क्या गाती है एहसासों की धड़कन,
महसूस करोगे, थोड़े करीब अगर आओ...


सौदा मेरी नींद का, तुमसे, ख्वाहिशों के लिए,
चलो, अब मेरी हथेली में नज़र आओ...

- © Sneha Rahul Choudhary 


[फोटो साभार - गूगल]

Thursday, June 18, 2015

बॉबी [चैप्टर 4]

[ पिछली कड़ियाँ यहाँ पढ़े - भूमिका, चैप्टर -1चैप्टर 2चैप्टर 3]

ऐसे ही “कुछ भी” करके कुछ न कुछ करते करते कुछ साल बीत गए और एक दिन ईशांत को अपने ऑफिस में एक लड़की “ईशा” के नाम के बैच के साथ दिखाई दी.
उसे देखते ही ईशांत की बांछे खिल गयी. उसे लगने लगा कि यकीनन उसके सपनों को पूरा होने में बस कुछ क़दमों का फासला है. और जब वह उसके करीब पहुंचा तो उसने पाया कि वह तो उसके ख़्वाबों से निकलकर उसके सामने आकर खड़ी हो गयी थी. मासूम सा चेहरा, बड़ी बड़ी खुबसूरत आँखें, फूलों से भी नाज़ुक होंठ और सावन की धूप में घटा जैसे उसके गालों पर बिखरे उसके बाल...

“हे हेल्लो,” उसने आगे बढ़कर लड़की की तरफ हाथ बढाते हुए कहा, “न्यू रिक्रूट? पहले कभी देखा नहीं...?”

“हेल्लो सर!” लड़की ने शालीनता से जवाब दिया, “एक्चुअली आई हैव कम तो मीट माय फ्रेंड.”

“ओह्ह नाईस. हूज योर फ्रेंड?”

“ईशा, शी इज इन एच आर.”

“ईशा...?” ईशांत मुस्कुराते हुए उसके मासूम से मजाक पर फ़िदा फ़िदा सा होते हुए बोला, “लूकिंग फॉर द गल हूज बैज यू वियर?”

“येस सर!” लड़की ने बिना किसी शिकन के कहा, “एक्चुअली आई ड्रॉप्ड कॉफ़ी ऑन माय शर्ट, सो आई हैड टू...” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी इस उम्मीद के साथ कि ईशांत उसकी पूरी बात समझ लेगा.

ईशांत उसकी बात समझ गया और इसीलिए उसने बातचीत का सिलसिला दूसरी दिशा में मोड़ लिया. उसे ये जानकार भी आश्चर्य हुआ कि उसकी कंपनी में पहले से ईशा नाम की एक लड़की थी. इसे इत्तेफाक के साथ साथ भगवान् की मर्ज़ी मानते हुए उसने नाम के साथ समझौता करते हुए उस लड़की के साथ अपनी जान पहचान बढानी शुरू कर दी. उसका नाम काजल था. वह बिलकुल वैसी ही थी जैसी ईशांत की चाहत थी. ऐसा लगता था जैसे भगवान् ने उसके ख़्वाबों ख्यालों से निकालकर उसकी ड्रीम गर्ल उसके सामने खड़ी कर दी हो. वह बिलकुल दूध जैसी गोरी थी. इतनी गोरी कि उसके कपोलों पर दूध में पिघली हुयी गुलाब की पंखुड़ियों जैसा रंग आ जाया करता था. वह खुबसूरत थी, मासूम थी, भोली थी, प्यारी थी, और सारे जहाँ की मासूमियत के साथ कभी कभी इशारों में ईशांत से अपने प्यार का इज़हार भी कर देती थी. कम से कम ईशांत को तो ऐसा ही लगता था. ज्यादा दिन नहीं बीते थे जब उसके खुबसूरत चेहरे पर अपने होंठो के स्पर्श के साथ ईशांत ने कहा था, “तुम जैसी बहु पाकर मेरी माँ बहुत खुश होगी.”

“और तुम?” उसने शर्माते हुए पूछा था.

खटर... खटर... खटर.... खटर.. खटर...

अचानक होने लगी इस खट पट से ईशांत काजल के ख्यालों से निकल वापस उस गैराज में पहुंचा. उसने सर घुमाया तो एक हिलती डुलती सी परछाई दिखी. यकीनन वो अक्की ही था...

ईशांत धीरे धीरे रेंगता हुआ उसके पास पहुंचा तो उसने देखा कि जिस तख्ते पर बॉबी लेटी है उस तख्ते के नीचे से अक्की एक थैला निकालने की कोशिश कर रहा था.

अक्की ने उसे आते देखा तो ऊँगली से चुप रहने का इशारा किया.

“ये क्या कर रहे हो?” ईशांत ने फुसफुसा कर पूछा.

“सुबह तक इंतज़ार नहीं कर सकता मैं.” अक्की ने भी फुसफुसा कर जवाब दिया.

ईशांत चुपचाप उसकी हरकतें देखने लगा. कुछ मिनटों की मेहनत के बाद अक्की बिना किसी आवाज़ के वह थैला निकालने में सफल हो गया जो वास्तव में एक बैग था. दोनों लड़के बिना आवाज़ किये चुपचाप गैराज से बाहर निकल आये कुछ दूर जाकर एक पत्थर के पास जाकर बैठ गए.

“तुमने इसे निकाल क्यों लिया? बॉबी हमें यहाँ लायी है. सुबह तक हमें सब कुछ पता चल ही जाएगा.”

“मेरे भाई.” अक्की मुस्कुराते हुए बोला, “जितना मैं बॉबी को जानता हूँ, वह अगर फांसी पर लटकने को भी होती तो मुझे मदद के लिए नहीं बुलाती. लेकिन उसने मुझे बुलाया है तो इसका मतलब ये है कि ये किस्सा मेरी सोच से कही ज्यादा मालदार है.”

“मतलब मैं समझा नहीं.” ईशांत ने हैरानी से कहा, “तुम बॉबी को जानते हो?”

अक्की के चेहरे की मुस्कान गायब हो गयी. दूर तक सूने रास्ते को निहारते हुए वह बोला, “बचपन से.” एक ठंडी आह निकली उसके दिल से. “लम्बी कहानी है. फिर कभी सुनाऊंगा. अभी इमोशनल मत करो.” उसने ज़ल्दी से खुद को संभालते हुए कहा.

ईशांत को उसकी में आवाज़ एक जाना पहचाना सा दर्द महसूस हुआ जो बड़ी ज़ल्दी गायब भी हो गया.

“बॉबी तो कमाल का लम्बा हाथ मारने के तैयारी में है. जियो मेरी जान. एक बार फिर दिल जीत लिया तुमने.”

ईशांत रह रह कर ख्यालों में खो जा रहा था जिस कारण उसने ध्यान नहीं दिया कि कब ईशांत ने उस बैग में से एक छोटी से पॉकेट डायरी निकाल ली थी और उसमे अपनी आँखें घुसाए हुए था.

“इसमें आखिर है क्या?” ईशांत ने उसके हाथ से डायरी लेकर पन्ने पलटते हुए कहा.

“प्लान.” अक्की ने खुश होते हुए कहा.

“कैसा प्लान? ईशांत ने खीझते हुए कहा, “इसमें बस कुछ अजीब से शब्द लिखे है ... हॉर्स डिग्री... रश्मिरथी... शेखर विलिअम्स.. कुछ समझ में नहीं आ रहा इसमें.”

“ये एक खजाने का कोडेड ब्लूप्रिंट है.” अक्की ने बैग में हाथ डालकर और कुछ पाने की उम्मीद में टटोलते हुए कहा, “बैग में और कुछ ख़ास नहीं है. दोनों चुड़ैले सो रही है. चुपचाप गाडी लेकर चलते बनो. इस कोड को अनलॉक करने में हम दोनों को एक दूसरे की ज़रुरत पड़ेगी. जब 50-50 बाँट सकते है तो 25-25 क्यों ले?”
वह बैग कंधे पर टांग कर गाडी की तरफ भागा तो ईशांत भी उसके पीछे भागा.

“ये कुछ ज्यादा ज़ल्दबाज़ी नहीं हो रही?” ईशांत ने हाँफते हुए पूछा.

“मैंने सोचा कि तुम सिर्फ शकल से चोमू दीखते हो. लेकिन तुम वास्तव में चोमू हो.” अक्की ने खीझते हुए गाडी स्टार्ट की.

ईशांत अब भी उसकी बात समझने की कोशिश कर रहा था कि अक्की की खीझी हुई दूसरी झल्लाहट आई, “जस्ट हॉप ऑन, यार! बिलकुल ही फ्यूज़ हो क्या तुम?”

इतनी झाड़ सुनने के बाद भी कन्फ्यूज़ सा ईशांत गाड़ी में बैठ गया. फिर क्या था. अक्की ने एक मिनट भी नहीं लगाया गाड़ी के फर्राटे मारने में.

***************

धूप काफी तेज़ थी. पसीने की बूँदें बॉबी के कंधे पर चमक रही थी. एक हाथ से अपना जैकेट कंधे पर टाँगे वह दूरबीन से कुछ देखने की कोशिश कर रही थी. कुछ कदम दूर नताशा एक पत्थर पर अपना चाक़ू तेज़ करने में लगी थी.

अक्की कुछ कदम हट कर उँगलियाँ तोड़ रहा था. और ईशांत बॉबी की डायरी में कुछ लिख रहा था. सब भरे पड़े थे लेकिन बोल कोई नहीं रहा था.

आखिरकार अक्की से बर्दाश्त नहीं हुआ, “मैं सिर्फ खाना लाने गया था. सोचा सुबह के लिए कुछ इंतज़ाम हो जाएगा. मुझे क्या पता था कि गाडी में सिर्फ एक किलोमीटर तक का पेट्रोल बचा है. आजकल भलाई का कोई ज़माना ही नहीं है. किसी के लिए कुछ करने का सोचो तो लोग शक करने लगते है.”

“काला सेठ की काली कमाई पर लगी काले कव्वे की काली नज़र की कसम अक्की, मैंने तुझसे ज्यादा भला इंसान दुनिया में नहीं देखा.” बॉबी मुस्कुराते हुए बोली और दूरबीन हटाकर आलू चिप्स का एक पैकेट फाड़कर खाने लगी.

“वक़्त बदलता है.. इंसान बदलते है...” अक्की पूरी बेशर्मी से अपनी करनी पर लीपापोती करने में लगा रहा.

“गलत.” बॉबी ने उसकी बात काटी, “इंसान बदलता है तभी वक़्त भी बदलता है. वक़्त तो दोहराया गया था. मैं सोयी थी और तू चला गया था. लेकिन इस बार बॉबी बदली हुई है इसलिए एक किलोमीटर बाद ही तू मुंह लटकाए मिल गया.”

“इसी बात की तो तकलीफ है, बॉबी कि तू भी मुझे दूसरों की नज़र से देखती है. कभी एक बार...” अक्की आगे भी कुछ कहना चाहता था लेकिन नताली ने एक मुक्का मारकर एक टहनी के दो टुकड़े कर दिए जिससे बड़ी तेज़ आवाज़ हुई और कुछ पल को वह भूल गया कि वह क्या बोलना चाहता था.
जब उसे याद आया कि उसे क्या बोलना था तब तक माहौल बदल चुका था क्योंकि बॉबी उसे एक झिडकी वाली नज़र से देखकर नताली के साथ कुछ गपशप करने में मशगूल हो गयी थी.

“मैं सीरियसली जानना चाहता हूँ कि इस प्लान की वायाबिलिटी क्या है?” ईशांत अक्की के पास बैठते हुए एक बड़े से चार्ट पेपर पर आरी तिरछी लकीरे खींचते हुए बोला, “मतलब एक अरबपति ने अपना सारा माल एक अनजान जगह छुपा रखा है जिसका नक्शा एक कविता में कोडेड है जो किसी और ही लिपि में लिखा है. ये सब बॉबी को कैसे पता चला? और ये सब सच है भी या नहीं...?”


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Tuesday, June 9, 2015

बॉबी [चैप्टर 3]

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“लेकिन करना क्या है?” अक्की ने कबाड़ से एक कुर्सी निकाल कर उसपर बैठते हुए पूछा.

“डकैती...” बॉबी ने नाखून चबाते हुए जवाब दिया.

“जे हुई न ज़ोरदार बात.” अक्की ने जोर से चिल्ला कर अपना समर्थन दिया, “अगर तुमने चोरी के लिए बुलाया होता तो मैं वापस चला जाता.”

“मैं कच्चे दांव नहीं खेलती, गुलफ़ाम.” बॉबी मुस्कुराते हुए बोली.

ईशांत ख़ामोशी से सबके चेहरे निहार रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. बॉबी उसकी ओर देखकर मुस्कुराई और सबसे बोली, “अभी सब आराम कर लो. कल हमें बहुत लम्बे सफ़र पर जाना है. जिसे जहाँ जो जगह मिले, लुढ़क लो...”

चारों ने अपनी ज़िन्दगी के रास्ते खुद चुने थे. इसलिए बिना किसी शिकायत के चारों चार कोने में लुढ़क लिए. थोड़ी देर में तीन अलग अलग तरह के डेसिबल के खर्राटे भी सुनाई देने लगे.

चौथा बचा था ईशांत! उसे नींद नहीं आ रही थी. वह यही सोच रहा था कि क्या उसने अपने ये लिए ये ज़िन्दगी चुनकर सही किया था.

किसी को बुरा न लगे तो एक बात कहे देती हूँ कि हम इंसान अव्वल दर्जे के बेवक़ूफ़ जानवर होते है. हमें लगता है कि ज़िन्दगी के फैसले हम लेते है लेकिन सच्चाई तो ये है ज़िन्दगी हमसे फैसले लिवाती है उल जुलूल हालात पैदा करके. हम खुद को बुद्धिमान मानकर समझते है कि सामने वाला वही सोच  रहा है जो हम चाहते है. लेकिन होता असल में कुछ और है. अब उदाहरण देखिये कि मुझे लग रहा है आप ये कहानी पढ़ कर नाखून चबाते हुए सोच रहे होंगे कि अब आगे क्या होने वाला है लेकिन हो ये रहा है कि आप नाक भौं सिकोड़ कर कह रहे है कि लो जी कर लो बात! आ गयी एक और कहानी चोरी वाली... अभी पिछले ही साल एक महा सुपर हिट फिल्म देखकर आये है नामे “हैप्पी न्यू ईयर” जिसे देखते हुए फिर से कुछ लोगो ने नाक भौं सिकोड़ कर कहा था कि भैया हम इटालियन जॉब और ओशन’स ट्राइलॉजी पचासों बार देख चुके है परन्तु ये देसी वर्जन भी अच्छा है. दरअसल नए डिब्बे में पुराना माल बेचकर “मैं होशियार” की फीलिंग रखने में कोई कानूनी बाधा नहीं है. अब हमें मिर्ची इसलिए लगी क्योंकि हमने पहले ही साफ़ कर दिया था कि यहाँ मामला “डकैती” का है “चोरी” का नहीं. इसलिए अगर आपने भूमिका की चेतावनियों को पढने के बाद भी कहानी पढने का निर्णय लिया है तो यकीन मानिए आपको निराशा नहीं होगी. कृपया इसे बकवास न कहे. भूमिका याद कीजिये. मैंने पहले ही कहा था कि सूत्रधार भी एक छद्म पात्र है.
खैर चलिए वापस वही चलते है जहाँ बात रुकी थी.

ईशांत के दिल में थोड़ी बहुत झिझक थी. उसे अपने सामने बस शून्य नज़र आता था. उसकी झिझक का इतिहास ज्यादा बड़ा नहीं है इसलिए बिना बोर किये यह बताया जा सकता है. ईशांत इक्कीसवी सदी के संस्कारी भारतीय परिवार में पैदा हुआ था. बचपन से ही उसपर माँ बाप के सपने स्कूल बैग के साथ साथ लदे थे. उसकी किस्मत अच्छी थी कि वो उस वक़्त पैदा नहीं हुआ था जब रियलिटी शोज़ का भूत माँ बाप के सर चढ़ कर बोलता था. वरना भगवान ने जितनी सुरीली आवाज़ उसे दी थी, उसके माँ बाप यकीनन उसे इंडियन आइडल जूनियर बना के ही मानते. उसके माँ बाप के सपने उसकी पीठ से उतर उसकी आँखों में आ गए और जब उसकी आँखें उन सपनों से भारी होने लगी तो डॉक्टर ने उसकी आँखों पर चश्मा चढवा दिया.
बचपन बीता और जवानी आई. अपने हमउम्र लड़कों की तरह ईशांत भी “एक अनदेखी अनजानी सी, पगली सी दीवानी सी” लड़की के ख्वाब देखने लगा. उसकी बड़ी इच्छा थी कि उसकी मुलाक़ात ईशा नाम की किसी लड़की से हो, थोड़ी लुका-छिपी हो, थोड़ी हसी-ठिठोली, थोड़े आंसू, थोड़ी उम्मीद, शादी और एक खुशनुमा ज़िन्दगी... न.. न.. खबरदार जो आपने शादी के बाद एक खुशनुमा ज़िन्दगी के ख्वाब देखने वाले ईशांत को हकीकत से अनजान बेवकूफ बालक समझा तो...! भैया, आप अपनी मैया की पूजा करते है कि नहीं...??? तो आप ई काहे भूल जाते है कि आपकी मैया की आपके बाबूजी के साथ शादी के बाद खुशनुमा ज़िन्दगी के बदौलत ही आप अपनी मैया की पूजा करने लायक बने हुए है... फिर आपको ईशांत के सपनों पर क्यों ऐतराज हो रहा है??
या फिर आप उसकी नाम वाली सनक पर भवें सिकोड़ रहे है..? देखिये ईशांत का अपने लिए ईशा नाम की लड़की की ख्वाहिश रखना उतना ही नेचुरल है जितना कि नवीन नाम के किसी लड़के का नूतन नाम की किसी लड़की से मिलने की ख्वाहिश रखना या सन 1998 के बाद से अंजलि नाम की किसी लड़की का राहुल नाम के किसी लड़के से “कुछ कुछ होता है राहुल, तुम नहीं समझोगे...” कहने की चाहत रखना...
इसी इच्छा को दिल में रखे उसने पढाई पूरी कि और नौकरी पर लग गया. माँ बाप का आदर्श बेटा ईशांत एक आदर्श गर्लफ्रेंड की तलाश में था जो आगे चल कर एक आदर्श वाइफ बन सके...
वैसे माँ बाप ने उसे केवल इतनी हिदायत दी थी कि “बेटा, हमारी मर्ज़ी के बिना चाहे “कुछ भी” करना मगर शादी मत करना.” इसलिए ईशांत “कुछ भी” करके माँ बाप की मर्ज़ी से ही शादी करना चाहता था.


ऐसे ही “कुछ भी” करके कुछ न कुछ करते करते कुछ साल बीत गए और एक दिन ईशांत को अपने ऑफिस में एक लड़की “ईशा” के नाम के बैच के साथ दिखाई दी. 
[क्रमश:]