Monday, October 3, 2011

जाने किस बात से ...

जाने किस बात से है परेशान ज़िँदगी
नियामतोँ के बीच है वीरान ज़िँदगी

इक तरफ हालात ज़ख्मी से पड़े हैँ
और इधर इस शोहरत से है हैरान ज़िँदगी

होँठोँ से मुस्कुराहटेँ जुदा न हुईँ कभी
और ज़रा सी इक खुशी से रही अनजान ज़िँदगी

लफ़्ज़ोँ से कहानी शुरू हुई थी उसी दिन
जिस दिन से हो गई थी बेज़ुबान ज़िँदगी

हर पल की जंग, एक जद्दोजहद जीने की
ज़िँदादिल से हौसलेँ मगर बेजान ज़िँदगी

कोई ख्वाब भी देख लेँ, कुछ खयाल भी सजा लेँ
हो जाए ग़र एक पल को भी आसान ज़िँदगी

कुछ पल फुरसत के, कुछ लम्हेँ राहत के
तलाशती है एक सुकून भरी मुस्कान ज़िँदगी

कामयाबियोँ मेँ शामिल गुमनामियाँ भी होँगी
शायद बन जाएगी एक ग़मग़ीन दास्तान ज़िँदगी

किस पर करे यकीन, कौन समझे यहाँ
करे अपना दर्द किससे बयान ज़िँदगी

नफ़रत-ए-तकदीर की जकड़न से आज़ाद कौन करे
कैसे बने किसी का अरमान ज़िँदगी