Saturday, May 14, 2016

इश्क़

शरारतों से है, हिमाकतों से है..
ज़िद से है और मोहब्बतों से भी है


बेमुरव्वती से है, तिश्नगी से है
गुरूर से है और सादगी से भी है





तेवरों से है, नर्मियों से है

खूबियों से है और खामियों से भी है




इन लम्हों में इसे समेटूं तो कैसे,
हैं इश्क़ इतना ज़्यादा कि ज़िन्दगी कम पड़ जायेगी...


- स्नेहा राहुल चौधरी



[चित्र : गूगल से साभार ]

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-05-2016) को "बेखबर गाँव और सूखती नदी" (चर्चा अंक-2344) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. प्रेम की कोई थाह नहीं .... समुन्दर ख़त्म नहीं होता ... लाजवाब ...

    ReplyDelete
  3. खुबसूरत नज्म, सच है एक पल ही काफी है, प्यार को पढने के लिए |

    ReplyDelete

मेरा ब्लॉग पढ़ने और टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.