Tuesday, June 9, 2015

बॉबी [चैप्टर 3]

[पिछली कड़ियाँ यहाँ पढ़े - भूमिकाचैप्टर 1चैप्टर 2

“लेकिन करना क्या है?” अक्की ने कबाड़ से एक कुर्सी निकाल कर उसपर बैठते हुए पूछा.

“डकैती...” बॉबी ने नाखून चबाते हुए जवाब दिया.

“जे हुई न ज़ोरदार बात.” अक्की ने जोर से चिल्ला कर अपना समर्थन दिया, “अगर तुमने चोरी के लिए बुलाया होता तो मैं वापस चला जाता.”

“मैं कच्चे दांव नहीं खेलती, गुलफ़ाम.” बॉबी मुस्कुराते हुए बोली.

ईशांत ख़ामोशी से सबके चेहरे निहार रहा था. उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. बॉबी उसकी ओर देखकर मुस्कुराई और सबसे बोली, “अभी सब आराम कर लो. कल हमें बहुत लम्बे सफ़र पर जाना है. जिसे जहाँ जो जगह मिले, लुढ़क लो...”

चारों ने अपनी ज़िन्दगी के रास्ते खुद चुने थे. इसलिए बिना किसी शिकायत के चारों चार कोने में लुढ़क लिए. थोड़ी देर में तीन अलग अलग तरह के डेसिबल के खर्राटे भी सुनाई देने लगे.

चौथा बचा था ईशांत! उसे नींद नहीं आ रही थी. वह यही सोच रहा था कि क्या उसने अपने ये लिए ये ज़िन्दगी चुनकर सही किया था.

किसी को बुरा न लगे तो एक बात कहे देती हूँ कि हम इंसान अव्वल दर्जे के बेवक़ूफ़ जानवर होते है. हमें लगता है कि ज़िन्दगी के फैसले हम लेते है लेकिन सच्चाई तो ये है ज़िन्दगी हमसे फैसले लिवाती है उल जुलूल हालात पैदा करके. हम खुद को बुद्धिमान मानकर समझते है कि सामने वाला वही सोच  रहा है जो हम चाहते है. लेकिन होता असल में कुछ और है. अब उदाहरण देखिये कि मुझे लग रहा है आप ये कहानी पढ़ कर नाखून चबाते हुए सोच रहे होंगे कि अब आगे क्या होने वाला है लेकिन हो ये रहा है कि आप नाक भौं सिकोड़ कर कह रहे है कि लो जी कर लो बात! आ गयी एक और कहानी चोरी वाली... अभी पिछले ही साल एक महा सुपर हिट फिल्म देखकर आये है नामे “हैप्पी न्यू ईयर” जिसे देखते हुए फिर से कुछ लोगो ने नाक भौं सिकोड़ कर कहा था कि भैया हम इटालियन जॉब और ओशन’स ट्राइलॉजी पचासों बार देख चुके है परन्तु ये देसी वर्जन भी अच्छा है. दरअसल नए डिब्बे में पुराना माल बेचकर “मैं होशियार” की फीलिंग रखने में कोई कानूनी बाधा नहीं है. अब हमें मिर्ची इसलिए लगी क्योंकि हमने पहले ही साफ़ कर दिया था कि यहाँ मामला “डकैती” का है “चोरी” का नहीं. इसलिए अगर आपने भूमिका की चेतावनियों को पढने के बाद भी कहानी पढने का निर्णय लिया है तो यकीन मानिए आपको निराशा नहीं होगी. कृपया इसे बकवास न कहे. भूमिका याद कीजिये. मैंने पहले ही कहा था कि सूत्रधार भी एक छद्म पात्र है.
खैर चलिए वापस वही चलते है जहाँ बात रुकी थी.

ईशांत के दिल में थोड़ी बहुत झिझक थी. उसे अपने सामने बस शून्य नज़र आता था. उसकी झिझक का इतिहास ज्यादा बड़ा नहीं है इसलिए बिना बोर किये यह बताया जा सकता है. ईशांत इक्कीसवी सदी के संस्कारी भारतीय परिवार में पैदा हुआ था. बचपन से ही उसपर माँ बाप के सपने स्कूल बैग के साथ साथ लदे थे. उसकी किस्मत अच्छी थी कि वो उस वक़्त पैदा नहीं हुआ था जब रियलिटी शोज़ का भूत माँ बाप के सर चढ़ कर बोलता था. वरना भगवान ने जितनी सुरीली आवाज़ उसे दी थी, उसके माँ बाप यकीनन उसे इंडियन आइडल जूनियर बना के ही मानते. उसके माँ बाप के सपने उसकी पीठ से उतर उसकी आँखों में आ गए और जब उसकी आँखें उन सपनों से भारी होने लगी तो डॉक्टर ने उसकी आँखों पर चश्मा चढवा दिया.
बचपन बीता और जवानी आई. अपने हमउम्र लड़कों की तरह ईशांत भी “एक अनदेखी अनजानी सी, पगली सी दीवानी सी” लड़की के ख्वाब देखने लगा. उसकी बड़ी इच्छा थी कि उसकी मुलाक़ात ईशा नाम की किसी लड़की से हो, थोड़ी लुका-छिपी हो, थोड़ी हसी-ठिठोली, थोड़े आंसू, थोड़ी उम्मीद, शादी और एक खुशनुमा ज़िन्दगी... न.. न.. खबरदार जो आपने शादी के बाद एक खुशनुमा ज़िन्दगी के ख्वाब देखने वाले ईशांत को हकीकत से अनजान बेवकूफ बालक समझा तो...! भैया, आप अपनी मैया की पूजा करते है कि नहीं...??? तो आप ई काहे भूल जाते है कि आपकी मैया की आपके बाबूजी के साथ शादी के बाद खुशनुमा ज़िन्दगी के बदौलत ही आप अपनी मैया की पूजा करने लायक बने हुए है... फिर आपको ईशांत के सपनों पर क्यों ऐतराज हो रहा है??
या फिर आप उसकी नाम वाली सनक पर भवें सिकोड़ रहे है..? देखिये ईशांत का अपने लिए ईशा नाम की लड़की की ख्वाहिश रखना उतना ही नेचुरल है जितना कि नवीन नाम के किसी लड़के का नूतन नाम की किसी लड़की से मिलने की ख्वाहिश रखना या सन 1998 के बाद से अंजलि नाम की किसी लड़की का राहुल नाम के किसी लड़के से “कुछ कुछ होता है राहुल, तुम नहीं समझोगे...” कहने की चाहत रखना...
इसी इच्छा को दिल में रखे उसने पढाई पूरी कि और नौकरी पर लग गया. माँ बाप का आदर्श बेटा ईशांत एक आदर्श गर्लफ्रेंड की तलाश में था जो आगे चल कर एक आदर्श वाइफ बन सके...
वैसे माँ बाप ने उसे केवल इतनी हिदायत दी थी कि “बेटा, हमारी मर्ज़ी के बिना चाहे “कुछ भी” करना मगर शादी मत करना.” इसलिए ईशांत “कुछ भी” करके माँ बाप की मर्ज़ी से ही शादी करना चाहता था.


ऐसे ही “कुछ भी” करके कुछ न कुछ करते करते कुछ साल बीत गए और एक दिन ईशांत को अपने ऑफिस में एक लड़की “ईशा” के नाम के बैच के साथ दिखाई दी. 
[क्रमश:]

4 comments:

  1. Lo phir se aisi jagah la kar ke chhoda k sochte raho ab kya hoga??
    Koi bat nhi writers ka to kam hi hai reader ko suspense me rakhna. I will wait for the next chapter...
    Haan but do write it quickly..

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया आशीष! नयी किश्त पोस्ट कर दी है

      Delete

मेरा ब्लॉग पढ़ने और टिप्पणी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.