ऐसे ही “कुछ भी” करके कुछ न कुछ करते करते कुछ साल बीत गए
और एक दिन ईशांत को अपने ऑफिस में एक लड़की “ईशा” के नाम के बैच के साथ दिखाई दी.
उसे देखते ही ईशांत की बांछे खिल गयी. उसे लगने लगा कि
यकीनन उसके सपनों को पूरा होने में बस कुछ क़दमों का फासला है. और जब वह उसके करीब
पहुंचा तो उसने पाया कि वह तो उसके ख़्वाबों से निकलकर उसके सामने आकर खड़ी हो गयी
थी. मासूम सा चेहरा, बड़ी बड़ी खुबसूरत आँखें, फूलों से भी नाज़ुक होंठ और सावन की
धूप में घटा जैसे उसके गालों पर बिखरे उसके बाल...
“हे हेल्लो,” उसने आगे बढ़कर लड़की की तरफ हाथ बढाते हुए कहा,
“न्यू रिक्रूट? पहले कभी देखा नहीं...?”
“हेल्लो सर!” लड़की ने शालीनता से जवाब दिया, “एक्चुअली आई
हैव कम तो मीट माय फ्रेंड.”
“ओह्ह नाईस. हूज योर फ्रेंड?”
“ईशा, शी इज इन एच आर.”
“ईशा...?” ईशांत मुस्कुराते हुए उसके मासूम से मजाक पर फ़िदा
फ़िदा सा होते हुए बोला, “लूकिंग फॉर द गल हूज बैज यू वियर?”
“येस सर!” लड़की ने बिना किसी शिकन के कहा, “एक्चुअली आई ड्रॉप्ड
कॉफ़ी ऑन माय शर्ट, सो आई हैड टू...” उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी इस उम्मीद के साथ
कि ईशांत उसकी पूरी बात समझ लेगा.
ईशांत उसकी बात समझ गया और इसीलिए उसने बातचीत का सिलसिला
दूसरी दिशा में मोड़ लिया. उसे ये जानकार भी आश्चर्य हुआ कि उसकी कंपनी में पहले से
ईशा नाम की एक लड़की थी. इसे इत्तेफाक के साथ साथ भगवान् की मर्ज़ी मानते हुए उसने नाम
के साथ समझौता करते हुए उस लड़की के साथ अपनी जान पहचान बढानी शुरू कर दी. उसका नाम
काजल था. वह बिलकुल वैसी ही थी जैसी ईशांत की चाहत थी. ऐसा लगता था जैसे भगवान् ने
उसके ख़्वाबों ख्यालों से निकालकर उसकी ड्रीम गर्ल उसके सामने खड़ी कर दी हो. वह
बिलकुल दूध जैसी गोरी थी. इतनी गोरी कि उसके कपोलों पर दूध में पिघली हुयी गुलाब
की पंखुड़ियों जैसा रंग आ जाया करता था. वह खुबसूरत थी, मासूम थी, भोली थी, प्यारी
थी, और सारे जहाँ की मासूमियत के साथ कभी कभी इशारों में ईशांत से अपने प्यार का
इज़हार भी कर देती थी. कम से कम ईशांत को तो ऐसा ही लगता था. ज्यादा दिन नहीं बीते
थे जब उसके खुबसूरत चेहरे पर अपने होंठो के स्पर्श के साथ ईशांत ने कहा था, “तुम
जैसी बहु पाकर मेरी माँ बहुत खुश होगी.”
“और तुम?” उसने शर्माते हुए पूछा था.
खटर... खटर... खटर.... खटर.. खटर...
अचानक होने लगी इस खट पट से ईशांत काजल के ख्यालों से निकल
वापस उस गैराज में पहुंचा. उसने सर घुमाया तो एक हिलती डुलती सी परछाई दिखी. यकीनन
वो अक्की ही था...
ईशांत धीरे धीरे रेंगता हुआ उसके पास पहुंचा तो उसने देखा
कि जिस तख्ते पर बॉबी लेटी है उस तख्ते के नीचे से अक्की एक थैला निकालने की कोशिश
कर रहा था.
अक्की ने उसे आते देखा तो ऊँगली से चुप रहने का इशारा किया.
“ये क्या कर रहे हो?” ईशांत ने फुसफुसा कर पूछा.
“सुबह तक इंतज़ार नहीं कर सकता मैं.” अक्की ने भी फुसफुसा कर
जवाब दिया.
ईशांत चुपचाप उसकी हरकतें देखने लगा. कुछ मिनटों की मेहनत
के बाद अक्की बिना किसी आवाज़ के वह थैला निकालने में सफल हो गया जो वास्तव में एक
बैग था. दोनों लड़के बिना आवाज़ किये चुपचाप गैराज से बाहर निकल आये कुछ दूर जाकर एक
पत्थर के पास जाकर बैठ गए.
“तुमने इसे निकाल क्यों लिया? बॉबी हमें यहाँ लायी है. सुबह
तक हमें सब कुछ पता चल ही जाएगा.”
“मेरे भाई.” अक्की मुस्कुराते हुए बोला, “जितना मैं बॉबी को
जानता हूँ, वह अगर फांसी पर लटकने को भी होती तो मुझे मदद के लिए नहीं बुलाती. लेकिन
उसने मुझे बुलाया है तो इसका मतलब ये है कि ये किस्सा मेरी सोच से कही ज्यादा मालदार
है.”
“मतलब मैं समझा नहीं.” ईशांत ने हैरानी से कहा, “तुम बॉबी
को जानते हो?”
अक्की के चेहरे की मुस्कान गायब हो गयी. दूर तक सूने रास्ते
को निहारते हुए वह बोला, “बचपन से.” एक ठंडी आह निकली उसके दिल से. “लम्बी कहानी
है. फिर कभी सुनाऊंगा. अभी इमोशनल मत करो.” उसने ज़ल्दी से खुद को संभालते हुए कहा.
ईशांत को उसकी में आवाज़ एक जाना पहचाना सा दर्द महसूस हुआ
जो बड़ी ज़ल्दी गायब भी हो गया.
“बॉबी तो कमाल का लम्बा हाथ मारने के तैयारी में है. जियो
मेरी जान. एक बार फिर दिल जीत लिया तुमने.”
ईशांत रह रह कर ख्यालों में खो जा रहा था जिस कारण उसने
ध्यान नहीं दिया कि कब ईशांत ने उस बैग में से एक छोटी से पॉकेट डायरी निकाल ली थी
और उसमे अपनी आँखें घुसाए हुए था.
“इसमें आखिर है क्या?” ईशांत ने उसके हाथ से डायरी लेकर
पन्ने पलटते हुए कहा.
“प्लान.” अक्की ने खुश होते हुए कहा.
“कैसा प्लान? ईशांत ने खीझते हुए कहा, “इसमें बस कुछ अजीब
से शब्द लिखे है ... हॉर्स डिग्री... रश्मिरथी... शेखर विलिअम्स.. कुछ समझ में
नहीं आ रहा इसमें.”
“ये एक खजाने का कोडेड ब्लूप्रिंट है.” अक्की ने बैग में
हाथ डालकर और कुछ पाने की उम्मीद में टटोलते हुए कहा, “बैग में और कुछ ख़ास नहीं
है. दोनों चुड़ैले सो रही है. चुपचाप गाडी लेकर चलते बनो. इस कोड को अनलॉक करने में
हम दोनों को एक दूसरे की ज़रुरत पड़ेगी. जब 50-50 बाँट सकते है तो 25-25 क्यों ले?”
वह बैग कंधे पर टांग कर गाडी की तरफ भागा तो ईशांत भी उसके
पीछे भागा.
“ये कुछ ज्यादा ज़ल्दबाज़ी नहीं हो रही?” ईशांत ने हाँफते हुए
पूछा.
“मैंने सोचा कि तुम सिर्फ शकल से चोमू दीखते हो. लेकिन तुम
वास्तव में चोमू हो.” अक्की ने खीझते हुए गाडी स्टार्ट की.
ईशांत अब भी उसकी बात समझने की कोशिश कर रहा था कि अक्की की
खीझी हुई दूसरी झल्लाहट आई, “जस्ट हॉप ऑन, यार! बिलकुल ही फ्यूज़ हो क्या तुम?”
इतनी झाड़ सुनने के बाद भी कन्फ्यूज़ सा ईशांत गाड़ी में बैठ
गया. फिर क्या था. अक्की ने एक मिनट भी नहीं लगाया गाड़ी के फर्राटे मारने में.
***************
धूप काफी तेज़ थी. पसीने की बूँदें बॉबी के कंधे पर चमक रही
थी. एक हाथ से अपना जैकेट कंधे पर टाँगे वह दूरबीन से कुछ देखने की कोशिश कर रही
थी. कुछ कदम दूर नताशा एक पत्थर पर अपना चाक़ू तेज़ करने में लगी थी.
अक्की कुछ कदम हट कर उँगलियाँ तोड़ रहा था. और ईशांत बॉबी की
डायरी में कुछ लिख रहा था. सब भरे पड़े थे लेकिन बोल कोई नहीं रहा था.
आखिरकार अक्की से बर्दाश्त नहीं हुआ, “मैं सिर्फ खाना लाने
गया था. सोचा सुबह के लिए कुछ इंतज़ाम हो जाएगा. मुझे क्या पता था कि गाडी में
सिर्फ एक किलोमीटर तक का पेट्रोल बचा है. आजकल भलाई का कोई ज़माना ही नहीं है. किसी
के लिए कुछ करने का सोचो तो लोग शक करने लगते है.”
“काला सेठ की काली कमाई पर लगी काले कव्वे की काली नज़र की
कसम अक्की, मैंने तुझसे ज्यादा भला इंसान दुनिया में नहीं देखा.” बॉबी मुस्कुराते
हुए बोली और दूरबीन हटाकर आलू चिप्स का एक पैकेट फाड़कर खाने लगी.
“वक़्त बदलता है.. इंसान बदलते है...” अक्की पूरी बेशर्मी से
अपनी करनी पर लीपापोती करने में लगा रहा.
“गलत.” बॉबी ने उसकी बात काटी, “इंसान बदलता है तभी वक़्त भी
बदलता है. वक़्त तो दोहराया गया था. मैं सोयी थी और तू चला गया था. लेकिन इस बार
बॉबी बदली हुई है इसलिए एक किलोमीटर बाद ही तू मुंह लटकाए मिल गया.”
“इसी बात की तो तकलीफ है, बॉबी कि तू भी मुझे दूसरों की नज़र
से देखती है. कभी एक बार...” अक्की आगे भी कुछ कहना चाहता था लेकिन नताली ने एक
मुक्का मारकर एक टहनी के दो टुकड़े कर दिए जिससे बड़ी तेज़ आवाज़ हुई और कुछ पल को वह
भूल गया कि वह क्या बोलना चाहता था.
जब उसे याद आया कि उसे क्या बोलना था तब तक माहौल बदल चुका
था क्योंकि बॉबी उसे एक झिडकी वाली नज़र से देखकर नताली के साथ कुछ गपशप करने में
मशगूल हो गयी थी.
“मैं सीरियसली जानना चाहता हूँ कि इस प्लान की वायाबिलिटी
क्या है?” ईशांत अक्की के पास बैठते हुए एक बड़े से चार्ट पेपर पर आरी तिरछी लकीरे
खींचते हुए बोला, “मतलब एक अरबपति ने अपना सारा माल एक अनजान जगह छुपा रखा है
जिसका नक्शा एक कविता में कोडेड है जो किसी और ही लिपि में लिखा है. ये सब बॉबी को
कैसे पता चला? और ये सब सच है भी या नहीं...?”
[Photo Credit - Google]
अच्छी चल रही है शृंखला..... सस्पेंस... :)
ReplyDeleteशुक्रिया! :)
Deleteसस्पेंस...
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