[ पहली कड़ी यहाँ पढ़े - चैप्टर 1]
चाय आ गयी थी. दोनों धीरे धीरे चाय सुड़कने लगे थे.
“मुझे लगता है मैंने तुम्हे पहले कही देखा है.” चाय पीते
हुए अक्की ने अपनी नज़रें उसपर टिकाई.
ईशांत हडबडा सा गया. उसके हाथ अचानक से सुन्न से पड़ने लगे
थे.
अक्की उसकी ये हडबडाहट देखकर एक मक्कार हंसी के साथ बोला,
“चिल्ल यार! मैं तो मजाक कर रहा था. बस वेट कर रहा था कि तुम अपनी बैक स्टोरी सुनाओ
या कुछ घबरा कर अपने मुंह अपनी ही सफाई देना शुरू कर दो...”
इससे पहले कि ईशांत कुछ बोल पाता, एक काली टोयोटा क्वालिस
आकर उनके सामने रुक गयी. गाड़ी के काले शीशे नीचे सरके और अन्दर से एक लड़की ने उन दोनों
की ओर देखा. कंधे से हलके नीचे झलके उसके काले बाल उसकी काली टर्टलनेक पर फब रहे
थे. ईशांत ने शंका से और अक्की ने बेतकल्लुफ़ी से उसे देखा.
लड़की ने कुछ पलों तक दोनों को घूरा और गियर बदलते हुए पूरी
धौंस के साथ बोली, “गाड़ी में बैठो.”
उसकी हुक्मरानी बात सुनकर अक्की तो खड़ा हो गया लेकिन ईशांत
ने शंकित होकर पूछा, “मुझसे कह रही हो?”
“हाँ!” लड़की ने संक्षिप्त जवाब दिया.
“अरे बैठो यार!” अक्की तब तक गाड़ी के सामने का दूसरी तरफ
वाला दरवाज़ा खोल चुका था, “टेंशन मत लो. मैं हूँ न..”
लड़की ने ग़ज़ब की फुर्ती के साथ दरवाज़ा बंद किया और तेवर के
साथ बोली, “तुम्हारे दादा की गाडी नहीं है. पीछे बैठो दोनों.” फिर वह सबको सुनाने
के अंदाज़ में बुदबुदाई, “पता नहीं, नमूनों को उठाने के लिए हमेशा मुझे ही क्यों
भेजा जाता है... ”
“और सुनो..!” हर एक पल का मज़ा लेते हुए अक्की पिछली सीट पर
बैठते हुए बोला, “पहले लड़के लड़कियों को उठाते थे, अब लडकियां लडको को उठा रही है,
“कलियुग है! घोर कलियुग!”
लड़की ने अचानक एक पिस्तौल निकाली और उसमें मैगज़ीन लोड करके
अक्की की ओर तानते हुए पूरी नफरत के साथ कहा, “अगर दुबारा तुम्हारे मुंह से आवाज़
निकली तो बोलने के लायक नहीं छोड़ूंगी.”
उसके गुस्से का मजाक उड़ाते हुए अक्की दांतों से होंठ काट कर
चुप हो गया. उससे हटा तो लड़की का ध्यान ईशांत पर गया जो अभी भी बाहर ही था. लड़की
ने उसे देखकर खीझते हुए कहा, “तुम्हें इनविटेशन कार्ड देना पड़ेगा क्या..?”
ईशांत हडबडाया हुआ सा पीछे की सीट पर अक्की की बगल में बैठ
गया. लड़की की पिस्तौल देखकर अक्की शांत हो गया था लेकिन जो चुप हो जाए वो अक्की
कहाँ... कुछ मिनट चुप रहने के बाद उसकी जुबान फिर खुली, लेकिन इस बार ईशांत के
लिए. “भाई,” उसने ईशांत से कहा, “मैंने तो अंदाज़ा नहीं लगाया था कि तुम भी उसी फ़ोन
कॉल पर शहीद होने निकल पड़े हो.”
ईशांत ने कोई जवाब नहीं दिया. लेकिन वह इतना समझ चुका था कि
उसे और अक्की को फ़ोन करके ज़िन्दगी में कुछ शानदार करने का लालच देकर रात के २ बजे
दिल्ली-आगरा हाईवे पर बुलाने वाली एक ही लड़की थी.
जो भी था... और जैसा भी हो रहा था... ईशांत की दिलचस्पी
ज़िन्दगी में मसलों में वापस आने लगी थी...
“बोल न भाई...” अक्की ने जोर से कहा तो ईशांत की तन्द्रा
टूटी, “खुद से बाते करके बोर हो गया. आई वान्ना नो योर स्टोरी...”
“कुछ नहीं.” ईशांत ने ठंडी आह भरकर कहा.
“इश्क़ का मामला लगता है मुझे तो.” अक्की ने अपनी एक आँख
दबाते हुए ईशांत को छेड़ा. ईशांत फिर भी चुप ही रहा.
ड्राईवर की सीट पर बैठी वह लड़की बहरों सा बर्ताव कर रही थी
मानो उसे अक्की की बाते सुनाई ही न दे रही हो. ईशांत को शक था कि हो न हो इसी लड़की
ने उसे फ़ोन किया था लेकिन अक्की को पक्का यकीन था फ़ोन पर जिसकी आवाज़ उसने सुनी थी
वह किसी और लड़की की थी. उन दोनों के मन में चल रहे कई सवालों से अनजान बनी वह लड़की
चुपचाप गाड़ी चलाये जा रही थी. गाड़ी के अन्दर रौशनी थी और उसी रौशनी में ईशांत
सामने के शीशे पर उभर रही लड़की के चेहरे को पढने की कोशिश कर रहा था. उसका चेहरा
अजीब तरीके से कठोर सा था. मतलब उसमे कोमलता या कमनीयता नाम की चीज़ नहीं थी. देखने
से ही उसके जबड़े काफी सख्त लग रहे थे. उसके होंठ अजीब से रूखे और सूखे से थे. उसके
नीचे वाले होठों के दाई तरफ कटे का एक हल्का सा निशान था जिसे छुपाने की शायद उस
लड़की ने कोई कोशिश नहीं की थी. उसकी आँखें उदास जैसी थी. उसके दाए गाल पर अजीब से
छोटे छोटे गड्ढे थे. शायद मुंहासों के... लेकिन मुंहासों के गड्ढे दोनों गालों पर
होने चाहिए थे न.. तो फिर ये गड्ढे... ईशांत गौर से देखने के चक्कर में अनजाने में
थोडा आगे झुक गया...
इतने में गाडी ने अचानक एक खतरनाक टर्न लिया और ईशांत का सर
शीशे से जा टकराया.
“अपनी औकात में रहो, ईशांत शर्मा...” लड़की पीछे पलट कर
गुर्राई, “तुम्हारे बॉस की बीवी नहीं हूँ जो तुम्हारे मासूम चेहरे पर फ़िदा हो
जाउंगी...” कुछ पलों तक घायल शेरनी की तरह ईशांत को घूरने के बाद उसने गाडी की
स्टीयरिंग फिर से संभाल ली.
अचानक हुए इस वाकये से ईशांत घबरा सा गया था. उसकी सांस
अचानक उखड गयी थी. वह थोड़ी देर शांत रहकर सामान्य होने की कोशिश करने लगा. अक्की
बेतकल्लुफी से दोनों को देखता रहा. बीच-बचाव करना वैसे भी उसके उसूलों में शामिल
नहीं था खासतौर पर तब तो हरगिज़ नहीं जब उसका कोई फायदा न होता है. लेकिन दिल ही दिल
में वह इस लड़की की हिम्मत पर दाद दे रहा था. वैसे भी बस में सीट के लिए रोने वाली
लडकियां उसे कभी पसंद नहीं आई थी. वह भी काफी देर से लड़की का भूगोल जाने की कोशिश
कर रहा था. लड़की शायद टीवी नहीं देखती थी. वरना अपने रूखे चेहरे पर एक बार तो
वैसलीन मलने का ख़याल उसे आ ही जाता. वैसे खूबसूरत तो थी वो. बस अपने सांवले चेहरे से
थोडा प्यार करती तो यकीनन उसकी खूबसूरती एक अलग ही मिसाल होती. लेकिन ऐसा लग रहा
था जैसे उसका ध्यान अपनी खूबसूरती के बजाय कही और उलझा हुआ था. और उसका ध्यान कहाँ
उलझा हुआ था ये अक्की ने बखूबी देख लिया था. उसके हाथों की कसरती मांसपेशियां
कहानी के कुछ हिस्सों को तो बयान कर ही रही थी. अक्की ने अंदाज़ा लगाया कि उसका एक
ज़ोरदार मुक्का किसी हट्टे कट्टे बन्दे के भी जबड़े तोड़ सकता था. अक्की जहाँ बैठा था
वहां से वह उसे अच्छी तरह से दिखाई दे रही थी. उसका कसरती शरीर चीख चीख कर उस के
वर्कआउट के कड़े अनुशासन की गवाही दे रहा था. “पुश-अप्स और वेट-लिफ्टिंग तो रोज़
करती होगी.” उसने सोचा लेकिन उससे पूछने की उसकी हिम्मत न हुई.
कुछ देर तक और चलने के बाद गाडी एक गेराज के आगे जाकर रुकी.
लड़की बिना उन दोनों की ओर देखे चुपचाप गाडी से उतर कर अन्दर चली गयी. अक्की ने
ईशांत की ओर देखा और मुस्कुराते हुए लड़की के पीछे चल दिया. ईशांत ने दोनों के देखा
और खामोशी से अक्की के पीछे हो लिया.
लड़की गेराज के पिछले दरवाजे से एक छोटे से कमरे में पहुंची
और एक छोटी सी लाइट जलाते हुए बोली, “बॉबी, लड़के आ गए है.”
अक्की ने आशिक़ी से और ईशांत ने कुतूहल से यह नाम सुना.
लेकिन हैरत तीनों को हुई जब कोई जवाब नहीं आया. लड़की ने लाइट पूरे कमरे में घुमाई
तो एक कोने में जीन्स और जैकेट पहने कुर्सी पर लुढकी हुई एक दूसरी लड़की दिखी जिसका
चेहरा काऊबॉय हैट से ढका था.
“बॉबी.” पहली ने दूसरी को दूसरी बार पुकारा.
दूसरी के शरीर में हरकत हुई. उसके दाए हाथ ने चेहरे से हैट
को हटाया और अपनी नींद से बोझिल आँखें लिए पूरी अंगड़ाई के साथ बॉबी उठ खड़ी हुई. उसने
आगे बढ़कर एक स्विच ऑन किया और पूरा कमरा रौशनी से नाहा गया. उसी रौशनी में उसने
ईशांत और अक्की को देखा और ईशांत और अक्की ने उसे.. कंधे तक झुल्के अखरोटी बाल, बड़ी
बड़ी आँखें, सलोना चेहरा, नाज़ुक से होंठ और उन होंठो पर एक कातिल मुस्कान..
वह दो कदम आगे बढ़ी और अपनी जेब से एक मोबाइल निकाल कर बगल
में रखी एक कुर्सी पर पैर फैला कर बैठते हुए बोली, “बड़ी देर से दर पे आँखे लगी
थी... हुज़ूर आते आते बड़ी देर कर दी...”
“हाय!” अक्की सीने पे हाथ रखते हुए आह भरने लगा, “क्या कहे
यारों कि हम ऐसे संगदिल से मिले... क़त्ल भी किया और जान भी बख्श दी, हम एक ऐसे
हसीन क़ातिल से मिले...”
बॉबी ने मुस्कुरा कर अक्की को देखा और फिर ईशांत की ओर
देखते हुए बोली, “खुशामदीद!”
“तुमने ही फ़ोन किया था न?” ईशांत ने पूछा.
“हाँ!” बॉबी ने जवाब दिया, “अगर तुम्हे जल्दी है तो हम आज से
ही काम शुरू कर देते है.”
“लेकिन करना क्या है?” अक्की ने कबाड़ से एक कुर्सी निकाल कर
उसपर बैठते हुए पूछा.
“डकैती...”
[क्रमशः]
Superb. Keeping up the suspense (Y)
ReplyDeleteशुक्रिया शशि :)
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