चार साल पहले इसे लिखा था ......
ये जिंदगी अश्को का एक समंदर है
कुछ खामोशी के साथ उठती कई लहरें है
इन पर भी कई अनकहे अल्फाज़ ठहरे है
खुद में समेटे कई दास्तानें ये सागर है
बढ़ रहा है शोर, तन्हाइयां घुट रही है
सहेज कर रखी हर माला टूट रही है
क्या रौशनी क्या अन्धेरा सब बराबर है
मंजिलो से पहले ही हर उम्मीद भटक जाती है
तूफानी लहरें कश्ती को भंवर में पटक जाती है
बिखर गयी पंखुड़ियां खो गया हर मंजर है
पार पाना नामुमकिन ये दरिया बहुत गहरा है
हसरतो पर हालातो का बेहद सख्त पहरा है
बाहर धधकती ज्वालामुखी अन्दर है
कुछ मिल जाए ऐसी किस्मत नहीं रही
कुछ पाने की भी अब चाहत नहीं रही
वक़्त के रहम-ओ-करम पर जिंदा अब मुक़द्दर है ....
- स्नेहा गुप्ता
पार पाना नामुमकिन ये दरिया बहुत गहरा है
ReplyDeleteहसरतो पर हालातो का बेहद सख्त पहरा है
बाहर धधकती ज्वालामुखी अन्दर है
बहुत गहन और सशक्त रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत बहुत धन्यवाद ताउजी
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