मुझे अपना एक-एक कदम एक-एक मील सरीखा महसूस हो रहा था.
बमुश्किल बीस मिनट दूर जेम्स का घर मुझे कई सदियों दूर महसूस हो रहा था. मुझे समझ
में नहीं आ रहा था आखिर जेम्स को सब कुछ बताते हुए मैं उसका सामना कैसे करुँगी.
पता नहीं ये सब कुछ जेम्स झेल भी कैसे पायेगा...
बूंदाबांदी जारी थी. केरल में तो ये आम बात ही थी. लेकिन एक
दिन पहले जो तूफ़ान आया था उसने मेरी और जेम्स की ज़िन्दगी को तबाह कर दिया था...
मैं अनमनी सी चली जा रही थी बस ये सोचते हुए कि ये रास्ता कभी ख़त्म न हो...
जेम्स का कॉटेज सामने नज़र आने लगा था. मेरी हिम्मत नहीं हो
रही थी अन्दर जाऊ. पिछली रात के तूफ़ान में सड़क के इस पार एक पेड़ गिर पड़ा था. मैं
उसकी ही एक शाखा पर बैठ गयी थी. सोच नहीं पा रही थी कि आखिर जेम्स से कहूँगी तो
क्या... “जेम्स, मुझे माफ़ कर दो. मैं अपना वादा नहीं निभा पायी...” ... “जेम्स,
तुम्हे इस तरह उसे अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहिए था...”
मुझे लग रहा था मेरा सर फट जाएगा.
इससे पहले कि कुछ और सोच पाती, मेरा मोबाइल बज उठा. मैंने
देखा – “जेम्स कालिंग...”
खुद पर पूरा नियंत्रण रखते हुए मैंने अपने आंसू पोंछे और
फ़ोन उठाया, “हेल्लो...”
“हेल्लो, शिन्नी...! वहाँ क्या कर रही हो...? अन्दर आओ.
बारिश में क्यों भींग रही हो?” जेम्स की आवाज़ थी... सारे जहाँ की खुशियाँ समेटे
हुए... ज़िन्दगी की उमंग और चाहत से भरपूर... मुझे आश्चर्य नहीं हुआ था जब मिली ने
बताया था, “वी आर सीइंग ईच अदर, यू नो...”
बस दुःख हुआ था...
“हेल्लो... हेल्लो... शिन्नी... देखो तो सामने...”
मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने देखा था कि जेम्स दरवाज़े पर खड़ा
होकर हाथ हिलाते हुए मेरा ध्यान आकर्षित करने की कोशिश कर रहा था. जैसे ही मैंने
उसे देखा, उसने फ़ोन काटकर अन्दर आने का इशारा किया.
अब मैं और नहीं भाग सकती थी...
मैं जैसे ही पास पहुंची, जेम्स ने झपट कर मुझे गले लगा
लिया.
“ओह शिन्नी... शिन्नी...! मैंने तुम्हें... तुम सबको कितना
मिस किया...”
वह बोले जा रहा था और मैं काठ हो गयी थी. सोच ही नहीं पा
रही थी अगर उसे सच्चाई बता दूँ तो क्या उसकी खुशियों की कातिल नहीं कहलाउंगी. उसका
मुस्कुराता हुआ चेहरा देखकर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा था.
“आज सुबह ही तुम्हारे घर आना चाहता था. फ़ोन किया था पर
तुमने उठाया नहीं तो सोचा बाद में मिल लूँगा...”
मैं क्या बताती उसे.. कि मैं घर पर नहीं कब्रिस्तान में थी.
हम अन्दर आ गए थे और अन्दर घुसते ही मेरा कलेजा टूक टूक हो
गया. पूरे घर में सिर्फ मिली ही छायी हुई थी. दीवारों, दरवाजों, मेजो, कुर्सियों..
हर जगह सिर्फ उसकी ही छाप नज़र आ रही थी. लग रहा था कि अब किसी तस्वीर से मिली
खिलखिलाती हुई बाहर निकल आएगी. सर घूम रहा था. मैं पास ही एक कुर्सी पर बैठ गयी. पूरे
घर में जैसे उसकी खुशबू फैली हुई थी. लग रहा था कि अब किसी कमरे से उसकी खनकती हुई
आवाज़ शिकायतों के साथ बाहर आएगी, “देखो न शिन्नी, पूरे घर को कबाड़ बना दिया है.
सोचो, शादी के बाद मैं कैसे रहूंगी इस कबाड़खाने में. अगर हर सन्डे साफ़ सफाई न
करूँ, तो पता चला किसी दिन मुनिसिपैलिटी वाले ये पूरा घर ही ले जायेंगे.”
“शिन्नी... शिन्नी...” जेम्स ने मेरा कन्धा हिलाया, “क्या
हुआ?”
“क.. कुछ नहीं.” मैंने खुद को संभाला, “जेम्स, कुछ बताना है
तुम्हे.”
“अभी नहीं.’ जेम्स ने मेरी बात काट दी. “पहली मेरी बनायीं हुई
कॉफ़ी पीकर फ्रेश हो लो, फिर करेंगे ढेर सारी बातें.”
और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना ही जेम्स किचन में चला
गया. मुझे हर चीज़ अजीब लग रही थी. सबसे ज्यादा अजीब ये बात थी कि जेम्स ने अभी तक
एक बार भी मिली के बारे में नहीं पूछा था. वरना तो हर वक़्त मिली मिली मिली... उस
दिन क्या हो गया था उसे. वो कुछ ज्यादा ही कूल और रिलैक्स लग रहा था.
मैं उसके बारे में ही सोच रही थी कि वह कॉफ़ी ले आया. “ये
लीजिये मैडम! गरमागरम कॉफ़ी...” वही गर्मजोशी... वही अंदाज़... चेहरे पर या आवाज़ में
ज़रा भी शिकन नहीं. अबिम ने मुझे बताया था पिछली रात से जेम्स से उसकी बात नहीं हुई
थी. जेम्स था तो बिलकुल सही लेकिन उसका मिली की खोज खबर न लेना अखर रहा था.
अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती थी. मुझे उसे सब कुछ बताना
था. वह कॉफ़ी मेज पर रख कर अपना सामान अनपैक करने में लग गया था.
“जेम्स, यहाँ बैठो.” मैंने उसे आवाज़ लगाते हुए सामने रखी
कुर्सी खींच ली थी.
“हाँ, बोलो.” जेम्स ख़ुशी से मेरे पास आकर बैठ गया. फिर खुद
ही कहने लगा, “सॉरी यार, पूरा सामान बिखरा हुआ है. आज सुबह ही आया पर कुछ कर नहीं
पाया...”
“जेम्स,’ मैंने उसकी बात काट दी, “मिली... मिली नहीं रही...”
मेरे हाथ कांपने लगे. मुझे लग रहा था कि मैंने उसका सामना नहीं कर पाउंगी. मैंने
नज़रे झुका ली, “कल रात को बहुत तेज़ तूफ़ान आया था. कल शाम को मिली ये कहकर निकली कि
वह तुम्हें बहुत मिस कर रही थी इसलिए कुछ वक़्त अकेले नेवल कैंप के पास वाले ‘बीच’
पर गुज़ार कर जल्दी लौट आएगी. लेकिन बारिश तेज़ हो जाने के बाद भी जब देर रात तक वह
नहीं आई तो हम सब उसे ढूँढने निकले. आज सुबह तीन बजे हमें उसकी लाश दो किलोमीटर
दूर मिली. हम अभी सेमेट्री से ही...” इसके आगे नहीं बोल पायी थी मैं. गला रुंध गया
था. लाख रोकने के बाद भी आंसू बह निकले. और आख़िरकार बाँध टूट गया और मैं बिलख बिलख
कर रोने लगी.
“जानता हूँ.”
ये जेम्स की आवाज़ थी. बेहद ठंडी और भावशून्य...
मैं अवाक रह गयी...
“जेम्स...” आगे कुछ कह नहीं पायी मैं...
“मुझे मालुम है कि मिली मर गयी.” जेम्स ऐसे बोलने लगा जैसे
मिली उसकी कोई न लगती थी, “आज सुबह ही पता चल गया था मुझे. अरे यार! जो पैदा होता
है वो मरता भी है. मिली भी मर गयी तो कौन सा पहाड़ टूट गया. सुबह से मुझे दिलासा दे
देकर लोगो ने मूड ऑफ कर रखा है. मिली मरी है... मैं तो नहीं मरा न..
डिसगस्टिंग...”
“तुम... तुम जल्लाद हो जेम्स...” मैं आपा खो बैठी, “जिस
लड़की पर अपनी जान लुटाते थे... आज उसके मरने पर तुम्हें अफ़सोस तक नहीं हो रहा...
कोई किसी के साथ टाइम पास भी करता है न तो उसकी मौत पर दुखी हो जाता है... लेकिन
तुम जैसा सेल्फिश आदमी शायद ही दुनिया में हो... मिली कितना प्यार करती थी
तुमसे... तुम इंसान नहीं हो सच... हैवान हो... शैतान हो...”
“बस!” जेम्स चिल्लाया, “मेरे घर में मुझ पर ही चिल्लाने की
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?”
“नहीं रहना मुझे यहाँ...” मैं भी तैश में आ गयी थी, “मुझे
तुमसे कोई रिश्ता भी नहीं रखना... शर्मिंदगी होती है कि कभी मैं तुम्हे अपना बेस्ट
फ्रेंड मानती थी...”
उसके बाद मैं रुकी नहीं. दनदनाते हुए उसके घर से निकली और
बारिश में ही भींगती हुई अपने कॉटेज में वापस आ गयी. दरवाज़ा बंद किया और औंधे मुंह
बिस्तर पर गिर पड़ी. सामने टेबल पर एक तस्वीर थी... हमारी यादों की तस्वीर... हम
तीनों साथ थे उसमे... मैं, मिली और जेम्स...
जो कुछ भी हुआ था उस दिन यकीन नहीं होता कि वो सपना था या
हकीकत... मिली की मौत और जेम्स की बेरुखी... मेरी तो जैसे दुनिया ही उजड़ गयी थी.
और मेरी दुनिया में था भी कौन जेम्स और मिली के अलावा... चार साल की उम्र से मदर
मरियम अनाथाश्रम में साथ साथ रहे थे हम और जेम्स. एक साथ खेले, कूदे और बड़े हुए...
सिस्टर ग्रेस की बदौलत मुझे और जेम्स को अच्छी पढाई मिली और बाद में नौकरी भी.
मेरी दुनिया में बस जेम्स ही था. बेस्ट फ्रेंड्स थे हम दोनों. मैंने कभी सोचा ही
नहीं था कि इसके आगे भी दुनिया होती है. फिर एक दिन हम दोनों की छोटी सी दुनिया
में मेरिलिन आई. वह जेम्स के साथ काम करती थी. उसका भी दुनिया में कोई नहीं था.
शायद एक अकेलेपन के दर्द का रिश्ता था जिसने हम तीनो को जोड़ दिया. फिर मेरिलिन
मिली बन गयी. और जब मिली ने मुझे बताया कि जेम्स से उसका अफेयर चल रहा था तो मुझे
लगा कि जैसे अन्दर कुछ टूट गया था. मैंने कभी जेम्स से शादी करने के बारे में नहीं
सोचा था. लेकिन जब मुझे महसूस हुआ कि अब उसकी ज़िन्दगी में कोई और लड़की होगी जो
मुझसे ज्यादा अहमियत रखेगी तो मुझे लगा जैसे ज़िन्दगी में मेरा एक ही खज़ाना था जो
मेरा नहीं रहा. मेरा और जेम्स का रिश्ता न तो दोस्ती था और न ही प्यार. हम दोनों
का रिश्ता दोस्ती और प्यार से बहुत ऊपर था... इसका कोई नाम नहीं था... ये एक ऐसा
रिश्ता था जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता था... लेकिन जब मैंने जेम्स की आँखों में
मिली के लिए वो खुशनुमा एहसास देखा तो मुझे इतनी ख़ुशी हुई जितनी शायद अपने लिए भी
कभी नहीं हुई थी... फिर मैंने भी दिल की सारी गिरहें खोलकर मिली का स्वागत किया और
जल्द ही मैं और मिली एक साथ शिफ्ट हो गए. जेम्स के अलावा एक अबिम था जो मेरी फ़िक्र
करता था. और कुछ वक़्त बाद मैंने भी उसे नज़र अंदाज़ करना बंद कर दिया था. मैंने
महसूस किया था अबिम वाकई मेरी परवाह करता था.
जेम्स मिली पर जान लुटाता था. और मिली भी उसपर दिलोजान से
फ़िदा थी. जो भी उन्हें देखता उनके प्यार की कसमें खाता. मुझे याद है मिली के
जन्मदिन पर जेम्स ने मुझसे पूछा था कि वह उसे क्या गिफ्ट दे. मैंने मोतियों का एक
‘नेकलेस’ ‘सज्जेस्ट’ किया था. और जेम्स बेवकूफी में नकली मोतियाँ ले आया था. खूब
हँसे थे फिर हम तीनों... जेम्स ने कहा था कि वह मोतियाँ बदल कर ले आएगा. लेकिन
मिली ने मना कर दिया था... वह ‘नेकलेस’ उसे दिल से भा गया था... और क्यों न
भाता... आखिर जेम्स का दिया हुआ तोहफा जो था... वह एक पल को भी उस नेकलेस को खुद
से अलग नहीं करती थी...
कितना चाहती थी वो जेम्स को... और क्या सिला दिया जेम्स ने
उसे...
रोते रोते मेरी आँख कब लग गयी थी मुझे पता नहीं चला था.
दरवाज़े पर हो रही खटखट से नींद खुली थी. दरवाज़ा खुला तो मैंने देखा सामने जेम्स
था. उसका ये रूप देखकर मैं डर गयी थी. लाल लाल सूजी हुई आँखें और अजनबी सा
चेहरा... मुझे लगा जैसे वह काफी देर से घर के बाहर भींग रहा था. मगर अचानक से मुझे
उसका रूखा हुआ ‘बिहेविअर’ याद आया और मैंने उसे झिड़क दिया, “क्या करने आये हो
यहाँ?”
“लोग झूठ कहते है तो मुझे अच्छा नहीं लगता शिन्नी.” बेहद
ठंडी आवाज़ में वह बोला, “मिली मरी नहीं है...”
उसकी आवाज़ इतनी सर्द थी कि एकबारगी मेरी कंपकंपी छूट गयी.
उसे देख-सुन कर ये साफ़ साफ़ ज़ाहिर हो रहा था कि वह अपने होश में नहीं था. यकीन नहीं
हो रहा था कि सुबह मैं इसी जेम्स से लड़कर आई थी. वह बुरी तरह भींगा हुआ था मगर लग
रहा था जैसे उसे कुछ महसूस ही नहीं हो रहा था. उसकी हालत देखकर मेरा कलेजा मुंह को
आ गया. मैं एक दोस्त को खो चुकी थी और दूसरे को हरगिज़ खोना नहीं चाहती थी.
“अन्दर आओ जेम्स...” मैंने उसे बुलाया और वह बिलकुल एक छोटे बच्चे की
तरह मेरे पीछे पीछे अन्दर आ गया. उसकी हालत खुद बखुद पुकार रही थी कि वह अपने होश
में नहीं था.
मैंने उसे पकड़ कर कुर्सी पर बिठा दिया और एक तौलिये से उसका
सर पोंछने लगी. वह खामोश नहीं था. बस अपनी ही धुन में बोले जा रहा था – “ मैंने
मिली से वादा किया था कि मैं कल ही आ जाऊँगा. और आऊंगा तो सबसे पहले उससे ही
मिलूँगा. मैंने ही उससे कहा था कि वह नेवल कैंप के पास वाले ‘बीच’ पर मेरा इंतज़ार
करे. उसने अपना वादा निभाया था, शिन्नी. वह आई थी मुझसे मिलने. बस मैं नहीं पहुँच
सका. लेकिन जानती हो शिन्नी? मैंने उससे कहा था कि अगर मैं उससे कल नहीं मिल पाया
तो अगले दिन ज़रूर मिलूँगा.”
मैं खामोशी से उसकी बात सुन रही थी. लेकिन अचानक वह बेचैन
हो उठा.
“शिन्नी... शिन्नी... तुम मेरे साथ चलो. वह बीच पर ज़रूर आई
होगी.” वह उठकर खड़ा हो गया और मेरा हाथ पकड़ कर दरवाज़े की तरफ चल पड़ा.
मैं अचानक से बदले उसके इस बर्ताव को समझ नहीं पायी. मैंने
उसे रोकने की कोशिश की, “जेम्स रुक जाओ. मिली मर चुकी है. वो भला अब ‘बीच’ पर कैसे
आ सकती है? होश में आओ जेम्स.” मैंने उसे झकझोरा.
“नहीं...!” जेम्स जोर से चिल्लाया, “मिली मरी नहीं है.
जिंदा है वो... हरपल उसे महसूस करता हूँ मैं.” वह काँप रहा था... पता नहीं सर्दी
से या गुस्से से... “जब लोग उसकी मौत का मातम मनाते है तो मुझे बहुत गुस्सा आता
है. दिल करता है सबको मार डालू मैं... मरी नहीं है मिली. मर कैसे सकती है वो..? कैसे
अपना वादा तोड़ सकती है?” वह हांफने लगा था. फिर मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए बाहर
ले जाने लगा, “चलो, मैं तुम्हे मिली से मिलवाता हूँ. वो जिंदा है और ज़रूर मेरा
इंतज़ार कर रही होगी..”
“रुको जेम्स.” मैंने उसे रोकने की कोशिश कि लेकिन उसने
परवाह नहीं की.
वह मुझे खींचते हुए बाहर ले आया. बारिश रुक चुकी थी. बस
बूंदाबांदी हो रही थी. लेकिन वह रुका नहीं. मुझे खींचते हुए ‘बीच’ की तरफ ले जाने
लगा और रास्ते भर बुदबुदाता रहा, “मर कैसे सकती है मिली? हरपल उसे महसूस करता हूँ
मैं... मेरे चारो तरफ है वो.”
मैं बस उसके पीछे चलती जा रही थी और कोशिश कर रही थी उसकी
हालत समझ सकू. मुझे डर लग रहा था कि कहीं जेम्स पागल न हो जाए.
आखिरकार हम ‘बीच’ पर पहुँच गए. जेम्स ने घड़ी देखकर कहा, “सात
बज गए है. वह आती ही होगी.”
मैं खामोश थी और उम्मीद कर रही थी कि थोड़ी देर बाद जेम्स
फूट फूट कर रोये और उसका गुबार बाहर निकल जाए.
मगर ऐसा हुआ नहीं. ‘बीच’ पर अजीब सी शान्ति छाई रही. यकीन
नहीं हो रहा था कि बस एक दिन पहले ही वहाँ तूफ़ान आया था जिसने मिली की जान ले ली
थी. उस दिन समंदर भी जैसे मिली को निगल कर शांत हो गया था.
कुछ ही मिनट बीते थे कि अचानक तेज़ आवाज़ हुई और समंदर से एक
बहुत बड़ी लहर किनारे की तरफ उठी. मैं हैरान थी कि अचानक शांत पड़े समंदर में इतनी
बड़ी लहर कहाँ से आ गयी. मैंने घबरा कर जेम्स को पीछे की तरफ खींचने की कोशिश की.
लेकिन टस से मस नहीं हुआ. उल्टा उसने बाँहे फैला दी और
आँखें बंद कर के बेहद शांत आवाज़ में बोला, “मेरी मिली आ गयी...”
मैं डर गयी और जोर से चिल्लाई, “जेम्स पागल मत बनो. चलो
यहाँ से.” उसे खींचने की मेरी सारी कोशिशें बेकार हो रही थी.
लेकिन जेम्स तो जैसे दूसरी ही दुनिया में चला गया था. बेहद
ठंडी आवाज़ में बोला, “तुम घर जाओ, शिन्नी... मैं मिली के साथ जाऊँगा...”
इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाती, पानी की तेज़ लहर ने मुझे
दूर तक पटक दिया. मेरी आँखों के आगे अँधेरा छा गया...
मैं कितनी देर तक बेहोश रही मालुम नहीं. लेकिन जब मेरी आँख
खुली तो समंदर में पहले की तरह ही मुर्दानगी जैसी शान्ति थी. आसमान साफ़ हो गया था
और चाँद की रौशनी पानी में चमक रही थी. लेकिन जेम्स का दूर दूर तक कोई पता नहीं
था.
मैं पागलों की तरह जेम्स जेम्स चिल्लाते हुए उसे ढूँढने लगी
लेकिन वह कही नज़र नहीं आया. मुझे लग रहा था कि बस एक ही पल में मेरी दुनिया उजड़ गयी
थी. जो दो लोग मेरे सबसे ज्यादा करीब थे वो मुझसे हमेशा के लिए बहुत दूर चले गए
थे. मैं रोते रोते वहीँ गिर पड़ी. तभी अचानक मेरी नज़र एक चमकती हुई चीज़ पर पड़ी.
मैंने उसे उठाकर देखा...
वो नकली मोतियों की माला थी जो चाँद की रौशनी में चमक रही
थी...
चित्र : गूगल से साभार
- © स्नेहा राहुल चौधरी
29/11/2011 9:20pm
Bahut umda rachna
ReplyDeleteshukriya shashi :)
Deleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद सर :)
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगवार (01-12-2015) को "वाणी का संधान" (चर्चा अंक-2177) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद सर
Deleteबेहद मर्मस्पर्शी कथा ...खो गए पढ़ते पढ़ते ..
ReplyDeleteशुक्रिया कविता मैडम :)
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