हवाओं में तैरो, आसमां से उतर आओ,
ऐ चाँद, कभी कभी ज़मीन पर भी नज़र आओ...
पलों में रूमानियत थोड़ी और बढ़ी है,
घड़ी दो घड़ी तो और ठहर जाओ...
सुनो, क्या गाती है एहसासों की धड़कन,
महसूस करोगे, थोड़े करीब अगर आओ...
सौदा मेरी नींद का, तुमसे, ख्वाहिशों के लिए,
चलो, अब मेरी हथेली में नज़र आओ...
[फोटो साभार - गूगल]
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.07.2015) को "मगर आँखें बोलती हैं"(चर्चा अंक-2046) पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर!
Deleteसुनो, क्या गाती है एहसासों की धड़कन,
ReplyDeleteमहसूस करोगे, थोड़े करीब अगर आओ...
बहुत लाजवाब ... करीब आ के ही जाना जा सकता है गहरे एहसास को ...
हर शेर कमाल का है ...
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद सर :)
Deleteक्या बात है। चाँद हथेली पर ......
ReplyDeleteबहुत खूब।
धन्यावाद आशा मैडम :)
Deleteबहुत प्यारा अहसास
ReplyDeleteधन्यवाद रश्मि मैडम :)
Deleteबेहद ख़ूबसूरत !
ReplyDeleteशुक्रिया ज्योति मैडम :)
Deleteबहुत ही भावनात्मक. बहुत खूब.....क्या बात है।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया संजय जी
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