मुकम्मल की चाहत किसे नहीं होती..
ज़िन्दगी से मुहब्बत किसे नहीं होती..
ज़िन्दगी से मुहब्बत किसे नहीं होती..
बेरहम हालातों को गवारा नहीं होता...
वरना मुस्कुराने की आदत किसे नहीं होती...
वरना मुस्कुराने की आदत किसे नहीं होती...
डर होता है ख़्वाबों के टूट जाने का...
ख्वाब सजाने की हसरत किसे नहीं होती...
ख्वाब सजाने की हसरत किसे नहीं होती...
ढूंढ लाने वाला अगर कोई मिल जाए तो..
खो जाने की चाहत किसे नहीं होती...
खो जाने की चाहत किसे नहीं होती...
बेरहम हालातों को गवारा नहीं होता...
ReplyDeleteवरना मुस्कुराने की आदत किसे नहीं होती...
सच कहा है ... हर कोई चाहता है मुकम्मल होना ... बस हालात साथ नहीं देते ...
जी सर, यही बात है. टिप्पणी के लिए धन्यवाद् :)
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (15-12-2014) को "कोहरे की खुशबू में उसकी भी खुशबू" (चर्चा-1828) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Bahut bahut dhanyawaad Sir :)
Deleteढूंढ लाने वाला अगर कोई मिल जाए तो..
ReplyDeleteखो जाने की चाहत किसे नहीं होती...
सुन्दर अभिव्यक्ति
Dhanyawaad Sir! Blog par aapka swagat hai
Delete..वाह...बहुत ख़ूबसूरत अहसास...प्रभावी अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteDhanyawaad Sanjay Ji
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