Thursday, June 27, 2013

एक ग़ज़ल

सोचती हूँ आज फिर एक ग़ज़ल की शुरुआत करूँ 
चंद अपने अल्फाजों से थोड़ी सी बात करूँ

न मालुम किस हाल में, कैसे हैं, कहाँ हैं 
अपनी हसरतों से आज फिर एक मुलाक़ात करूँ

रूखी सी ज़िन्दगी में ख्वाब अधूरे जो छूट गए
उन्हें संवारू, निखारू और ख़्वाबों से खयालात करूँ 

कि होंठ हो खामोश जब कहना हो बहुत कुछ 
तो फिर अपनी कलम से ही ज़ाहिर सब जज़्बात करूँ

- © स्नेहा गुप्ता
२७/०६/२०१३ 

4 comments:

  1. सोचती हूँ आज फिर एक ग़ज़ल की शुरुआत करूँ
    चंद अपने अल्फाजों से थोड़ी सी बात करूँ
    ......बहुत खूब! हर शेर बेहतरीन है.

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  2. बहुत बहुत बधाई इस खूबसूरत गज़ल के लिये।

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  3. बहुत सुंदर जज्बात बयाँ किये आपकी कलम ने, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. ना मालूम किस हाल में हैं, कैसे हैं, कहाँ है
    अपनी हसरतों से फिर आज मुलाकात करूँ।

    वाह बहुत अच्छे....
    अच्छी ग़ज़ल कही है।

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