सुनो,
तुम डराया न करो मुझे इस
तरह..
मुझे डर लगता है
कभी तुम्हारी आँखों से
कभी तुम्हारी बातो से
फिर भी तुम्हे जानना चाहती
हूँ
तुम्हे समझना चाहती हूँ
मुझे जानने दो
तुम्हे
समझने दो
तुम्हे सोचना मुझे अच्छा
लगता है..
मैंने तुम्हे बताया नहीं
कभी
तुम एक रहस्यमयी किताब से हो
तुम्हे पढ़ लेना चाहती हूँ
लेकिन अचानक नहीं
बल्कि हर पन्ना हर रोज़
थोड़ा थोड़ा करके
तुम्हे पढना मुझे अच्छा
लगता है
मैंने तुम्हे बताया नहीं
कभी
तुम एक बहुघातीय समीकरण से
हो
कभी तुम्हे सुलझा लेना
चाहती हूँ
कभी यूं ही उलझ कर रह जाना
चाहती हूँ
सुलझ कर उलझ जाना मुझे
अच्छा लगता है
मैंने तुम्हे बताया नहीं
कभी
कि तुम धुंध कि तरह छाये हो
मेरी ज़िन्दगी में
और
धुंध में भटकना मुझे अच्छा
लगता है
मैंने तुम्हे बताया नहीं
कभी
कि मैं जानती हूँ
कि तुम कभी सुनोगे भी नहीं
कभी पलटकर देखोगे भी नहीं
फिर भी तुम्हे पुकारना मुझे
अच्छा लगता है
मैंने तुम्हे बताया नहीं
कभी
कि मुझे मालुम है
कि तुम्हारी चाहत वो हसीं
दुनिया है
जो तुम्हारे आगे है
और तुम्हारी ख़ुशी में ही
खुश होना मुझे अच्छा लगता है
मैंने तुम्हे बताया नहीं
कभी
कि ऐसे सैकड़ो ख़त मैंने लिख
डाले है तुम्हे
जो तुम कभी पढोगे भी नहीं
और मेरे अलावा कोई तुम्हे लिखेगा
भी नहीं
फिर भी ...........
.............. अच्छा लगता
है......
03/05/2013 09:30PM
बेहद सुंदरता से शब्द संयोजन किया गया है, कविता गहरा प्रभाव डाल रही है बिल्कुल एकल प्रेम पाति सी. शायद पहली बार हुआ है कि किसी कविता को मैने तीन बार पढा हो, बहुत ही बेहतरीन रचना.
ReplyDeleteरामराम
बहुत बहुत धन्यवाद ताउजी
Deleteतुम एक बहुघातीय समीकरण से हो
ReplyDeleteकभी तुम्हे सुलझा लेना चाहती हूँ
कविता के चौथे स्टेंजा में बहुघातीय समीकरण शब्द ने स्कूल की याद दिला दी, गणित के मास्साब से बहुत डंडे खिलाये हैं इस बहुघातीय समीकरण ने.:)
वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा दिजीये, इसकी वजह से टिप्पणी करने में बहुत देर लगती है और ब्लागिंग में ज्यादा कुछ उपयोग नही है इसका.
रामराम
आपकी आज्ञा सर आँखों पर ताऊजी. हटा दिया वर्ड वेरिफिकेशन :)
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (04-05-2013) दो मई की वन्दना गुप्ता जी के चर्चा मंच आपकी नज़र आपका कथन में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद मयंक सर
Deleteबहुत सुन्दर! दिल को छू लेनी वाली रचना!
ReplyDeleteकभी यहां भी पधारकर मुझे अनुग्रहीत करें-
http://voice-brijesh.blogspot.com
बहुत धन्यवाद बृजेश जी
Deleteफिर भी ...........
ReplyDelete.............. अच्छा लगता है......
सच ... बहुत ही खूबसूरत से अहसास ...
बहुत बहुत धन्यवाद सदा जी
Deleteकि मुझे मालुम है
कि तुम्हारी चाहत वो हसीं दुनिया है
जो तुम्हारे आगे है
और तुम्हारी ख़ुशी में ही खुश होना मुझे अच्छा लगता है--
प्रेम की गहन अनुभूति
बहुत सुंदर
आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
http://jyoti-khare.blogspot.in
धन्यवाद ज्योति सर
Deleteकितना कुछ रह जाता है अनकहा....
ReplyDeleteहाँ बहुत कुछ अनकहा ही रह जाता है...
Deleteअनजाने की कितना कुछ प्रेम का कुछ कह जाती है ...
ReplyDeleteशब्दों की जादूगरी ... लाजवाब ...
धन्यवाद सर !
Deleteवैसे तुम पुकार कर तो देखो.... क्या पता वो पलट कर तुम्हे सुन ले।
ReplyDeleteखालीपन और अकेलेपन का एहसास लिए अच्छी रचना।
शुक्रिया मानव :)
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