Saturday, January 5, 2013

ज़िन्दगी में इस क़दर कोहरा घना है .....

ज़िन्दगी में इस क़दर कोहरा घना  है
क्या पता कौन दोस्त कौन दुश्मन बना है

क्या कहूँ किसने मेरे दिल पर वार किया
यहाँ तो हर हाथ मेरे ही खून से सना है

मेरी चुप्पी को हरगिज़ न समझिये मेरी नाराज़गी
दरअसल यहाँ मेरा मुस्कुराना भी मना है

मालूम नहीं इनमे कहाँ खो सी गयी है वो
मुझे इन लम्हों में से ज़िन्दगी को छाँटना है

ये मेरी ग़ज़ल पढ़कर जाने क्यों खामोश है वो
मैं समझूँ तारीफ़ मगर ये वक़्त की आलोचना है

- स्नेहा गुप्ता 





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