पार्किंग में बाइक लगाकर अभि तेज़ कदमो से पार्क के अन्दर दाखिल हुआ. काफी
चहल पहल थी हमेशा की तरह. कुछ आगे चलने पर उसे मान्या दिखाई दी वहीँ पीले
गुलाब की झाड़ियो के पास वाली बेंच पर बैठी हुई. उसके हाथ में परिणीता थी.
लेकिन वह पढ़ नहीं रही थी ये बात अभि भांप गया क्यूंकि उसकी निगाहें किताब
के पन्नो पर नहीं बल्कि कही शून्य में थी. वह उसके पास पहुंचा.
"हेल्लो मान्या." उसने हमेशा की तरह उसे चौकाने के इरादे से अचानक कहा.
मान्या ने सर तो घुमाया पर उसे देखे बिना बेंच से उठकर पीले गुलाब वाली झाड़ियो के पास चली गयी.
अभि हैरान सा उसे देखने लगा. नाराज़ थी वह. लेकिन क्यों? किस बात से?
"क्या हुआ मान्या?" उसने पास जाकर उससे पूछा बिलकुल उसकी नज़र के सामने आते हुए ताकि इस बार वह नज़रे न फेर सके लेकिन मान्या ने फिर से नज़रे घुमा ली.
"आखिर बात क्या है?" अभि ने पूछा उससे. कोई जवाब नहीं. "देखो तो, आज मैंने नीली शर्ट पहनी है और कितना हैंडसम लग रहा हु और तुमने अभी तक तारीफ़ भी नहीं की मेरी." अभि को पूरा यकीन था की यह बात सुनते ही मान्या उसकी तरफ हंस कर देखेगी ज़रूर.
मान्या ने उसकी ओर देखा लेकिन हंस कर नहीं. यह क्या? बड़ी बड़ी आँखे बिलकुल लाल लाल. जैसे मान्या रो रही हो काफी देर से.
"क्या बात है मान्या?" अभि ने थोडा घबरा कर पूछा. उसने कभी मान्या को रोते हुए नहीं देखा था.
"तुमने सारिका से बात की?" मान्या ने भींगी हुई आवाज़ में पूछा.
"सारिका से? हाँ, उसे ही तो दी थी परिणीता तुम्हे दे देने के लिए."
"क्यूँ?"
"क्यूँ का मतलब?" अभि ने हैरानी से पूछा, "तुम्हारे कॉलेज गया था. पता चला तुम आई नहीं थी. और पार्क में भी तुम नहीं आ रही थी कई दिनों से. इसलिए मैंने तुम्हारी दोस्त सारिका को परिणीता दे दी, तुम्हे देने लिए. और तुम तो जानती हो की लाइब्रेरी में परिणीता के लिए कितनी मारा मारी चलती है. कल ही यह किताब एक लड़के ने लौटाई. मेरी नज़र पड़ गयी और मैंने तुरंत इसको ले लिया. तुमने कहा था की तुम्हे परिणीता पढनी है. इसलिए तुम्हे देने कॉलेज चला गया. सारिका को यह सोच कर दे दी की तुम तो आई नहीं लेकिन छुट्टी में इसो पढ़ तो लोगी कम से कम."
"हाँ, मैं तो मर गयी थी न! फिर आती ही नहीं कभी." मान्या फफक कर रो पड़ी.
"ये क्या हो गया है मान्या तुम्हे?" अभि हैरान था. मान्या संतुलित स्वभाव की लड़की थी और उसका इस तरह से आपा खो देना अभि के लिए बहुत अचरज की बात थी.
"ऐसी क्या बात हो गयी की तुम मेरा इंतज़ार नहीं कर सके जो सारिका को किताब दे दी." मान्या हिचकियों के बीच बोली.
"अच्छा, तो तुम्हे लगता है की मैं तुम्हारी दोस्त के साथ फ्लर्ट कर रहा था." अभि ने थोड़े गुस्से से कहा.
"नहीं," थोड़े शांत स्वर में मान्या बोली, "मैं जानती हु तुम फ्लर्ट नहीं हो. लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा की हमारी दोस्ती में सारिका की ज़रूरत क्यों महसूस की तुमने."
"ऐसा नहीं है, मान्या." अभि को अब समझ में आया. तो मान्या इस बात से नाराज़ थी की उसने सारिका से बात की, "मैं सिर्फ ये किताब तुम तक ज़ल्दी पहुचाना चाहता था. बस."
"ज़ल्दी?" मान्या का स्वर फिर तेज़ हो गया, "तुम बिजनेस टूर पर थे जब मुझे ग़ुलाम अली की बहारों का बांकपन मिली. तुम्हारे सभी दोस्त आते थे पार्क में, सौरभ, अनिकेत, वरुण सब आते थे. लेकिन मैंने पंद्रह दिनों तक तुम्हारे लौट आने का इंतज़ार किया. तुम लौटे और मैंने तुम्हारे हाथ में दी वो कैसेट."
"अच्छा बाबा." अभि ने गहरी सांस लेकर कहा, "गलती हो गयी. अब कोई भी बात होगी तो सिर्फ तुमसे कहूँगा. तुम्हारी दोस्तों से नहीं." अभि उसे मनाने की गरज से मुस्कुराया.
मान्या ने अपने आंसू पोंछे. कुछ देर चुप रही. फिर अभि की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ, हैंडसम तो लग रहे हो."
"शुक्रिया मोहतरमा." अभि खुश हो गया. मान्या उसकी बहुत अच्छी दोस्त थी लेकिन फिर भी उस जैसी समझदार लड़की का इस तरह ज़रा सी बात पर उखड जाना उसके पल्ले नहीं पड़ रहा था.
मान्या अब शांत थी. अभि ने अच्छा मौका जानकार कहा, "देखो मान्या, यह कोई बड़ी बात नहीं है. बल्कि मेरा तो मानना है की हमारे कॉमन फ्रेंड्स होने चाहिए. मान लो कभी ऐसा हो की हमारी तुम्हारी बात नहीं हो पाए या हम मिल न पाए तो कॉमन फ्रेंड्स के ज़रिये हम एक दुसरे के कान्टेक्ट में रह सकते है."
"कान्टेक्ट में हम वैसे भी रह सकते है. फोन से, ईमेल से, मेसेज से. चाहो तो हज़ार तरीके है न चाहो तो हज़ार बहाने." मान्या का स्वर तेज़ होता जा रहा था.
"अरे, तुम समझी नहीं मान्या," अभि ने कोशिश की उसे समझाने की, "अब जैसे मेरे जितने भी दोस्त है वो सब आपस में भी दोस्त है. इससे फ्रेंड्स सर्किल बनता है. दोस्ती और भी ज्यादा मजबूत होती है. मैं तो कहता हूँ की उसी तरह तुम भी मेरे दोस्तों को जानो और मैं भी तुम्हारे दोस्तों को जानू. इससे हम एक दुसरे को और बेहतर जान पायेंगे."
"अभि," मान्या की आवाज़ फिर से भींग गयी थी, "हम दो साल से दोस्त है. क्या मैंने तुम्हे कभी परेशान किया है? कभी कोई ग़लतफहमी रखी तुम्हे लेकर?"
"अरे नहीं कभी नहीं." अभि को लगा मान्या बात को दूसरी तरफ ले जा रही है लेकिन वह रोक नहीं पाया.
"कभी तुम्हे किसी और की ज़रूरत पड़ी मुझे कोई बात समझाने के लिए?"
"नहीं, तुम तो वैसे ही बहुत सुलझी हुई लड़की हो." अभि खुद ही उलझा जा रहा था.
"तो फिर हमारे बीच कॉमन फ्रेंड्स क्यों होने चाहिए? तुम्हे मुझसे बात करने के लिए किसी ज़रिये की ज़रूरत क्यों महसूस होती है. क्यों कोई कॉमन फ्रेंड चाहिए तुम्हे? क्यों आये कोई तीसरा हमारे बीच???" मान्या की आँखें बरसाती नदी की तरह बहने लगी. उसके हाथ से परिणीता छूट कर नीचे गिर पड़ी. उसने अपनी रोती हुई आँखों से एक नज़र भर कर अभि को देखा और पीले गुलाब वाली झाड़ियो से होते हुए पार्क के दुसरे दरवाजे की ओर चली गयी. कुछ कदम तेज़ चलने के बाद वह आँखों से ओझल हो गयी.
अभि उसे जाते हुए देखता रहा. उसने उसे रोका नहीं. आवाज़ भी नहीं दी.
"अभि, ये मान्या थी न?" मिश्रा अंकल बोले. मिश्रा अंकल भी अक्सर पार्क में आते थे. अभि और मान्या दोस्त है, वो जानते थे.
"हाँ." अभि ने कहा.
"क्या हुआ उसे? ऐसे क्यों चली गयी?" मिश्रा अंकल ने पूछा.
अभि ने कोई जवाब नहीं दिया. वह अभी भी उस रास्ते को ही देख रहा था जहा से अभी कुछ देर पहले मान्या रोती हुई गयी थी.
मिश्रा अंकल अचरज से उसे देख रहे थे.
"ये कौन से रंग के गुलाब है, अंकल?" अचानक अभि ने पूछा.
"पीले गुलाब है." मिश्रा अंकल ने हैरानी से जवाब दिया.
अभि के चेहरे पर भीनी सी मुस्कान तैर गयी, "मुझे तो सुर्ख लग रहे है...."
"हेल्लो मान्या." उसने हमेशा की तरह उसे चौकाने के इरादे से अचानक कहा.
मान्या ने सर तो घुमाया पर उसे देखे बिना बेंच से उठकर पीले गुलाब वाली झाड़ियो के पास चली गयी.
अभि हैरान सा उसे देखने लगा. नाराज़ थी वह. लेकिन क्यों? किस बात से?
"क्या हुआ मान्या?" उसने पास जाकर उससे पूछा बिलकुल उसकी नज़र के सामने आते हुए ताकि इस बार वह नज़रे न फेर सके लेकिन मान्या ने फिर से नज़रे घुमा ली.
"आखिर बात क्या है?" अभि ने पूछा उससे. कोई जवाब नहीं. "देखो तो, आज मैंने नीली शर्ट पहनी है और कितना हैंडसम लग रहा हु और तुमने अभी तक तारीफ़ भी नहीं की मेरी." अभि को पूरा यकीन था की यह बात सुनते ही मान्या उसकी तरफ हंस कर देखेगी ज़रूर.
मान्या ने उसकी ओर देखा लेकिन हंस कर नहीं. यह क्या? बड़ी बड़ी आँखे बिलकुल लाल लाल. जैसे मान्या रो रही हो काफी देर से.
"क्या बात है मान्या?" अभि ने थोडा घबरा कर पूछा. उसने कभी मान्या को रोते हुए नहीं देखा था.
"तुमने सारिका से बात की?" मान्या ने भींगी हुई आवाज़ में पूछा.
"सारिका से? हाँ, उसे ही तो दी थी परिणीता तुम्हे दे देने के लिए."
"क्यूँ?"
"क्यूँ का मतलब?" अभि ने हैरानी से पूछा, "तुम्हारे कॉलेज गया था. पता चला तुम आई नहीं थी. और पार्क में भी तुम नहीं आ रही थी कई दिनों से. इसलिए मैंने तुम्हारी दोस्त सारिका को परिणीता दे दी, तुम्हे देने लिए. और तुम तो जानती हो की लाइब्रेरी में परिणीता के लिए कितनी मारा मारी चलती है. कल ही यह किताब एक लड़के ने लौटाई. मेरी नज़र पड़ गयी और मैंने तुरंत इसको ले लिया. तुमने कहा था की तुम्हे परिणीता पढनी है. इसलिए तुम्हे देने कॉलेज चला गया. सारिका को यह सोच कर दे दी की तुम तो आई नहीं लेकिन छुट्टी में इसो पढ़ तो लोगी कम से कम."
"हाँ, मैं तो मर गयी थी न! फिर आती ही नहीं कभी." मान्या फफक कर रो पड़ी.
"ये क्या हो गया है मान्या तुम्हे?" अभि हैरान था. मान्या संतुलित स्वभाव की लड़की थी और उसका इस तरह से आपा खो देना अभि के लिए बहुत अचरज की बात थी.
"ऐसी क्या बात हो गयी की तुम मेरा इंतज़ार नहीं कर सके जो सारिका को किताब दे दी." मान्या हिचकियों के बीच बोली.
"अच्छा, तो तुम्हे लगता है की मैं तुम्हारी दोस्त के साथ फ्लर्ट कर रहा था." अभि ने थोड़े गुस्से से कहा.
"नहीं," थोड़े शांत स्वर में मान्या बोली, "मैं जानती हु तुम फ्लर्ट नहीं हो. लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा की हमारी दोस्ती में सारिका की ज़रूरत क्यों महसूस की तुमने."
"ऐसा नहीं है, मान्या." अभि को अब समझ में आया. तो मान्या इस बात से नाराज़ थी की उसने सारिका से बात की, "मैं सिर्फ ये किताब तुम तक ज़ल्दी पहुचाना चाहता था. बस."
"ज़ल्दी?" मान्या का स्वर फिर तेज़ हो गया, "तुम बिजनेस टूर पर थे जब मुझे ग़ुलाम अली की बहारों का बांकपन मिली. तुम्हारे सभी दोस्त आते थे पार्क में, सौरभ, अनिकेत, वरुण सब आते थे. लेकिन मैंने पंद्रह दिनों तक तुम्हारे लौट आने का इंतज़ार किया. तुम लौटे और मैंने तुम्हारे हाथ में दी वो कैसेट."
"अच्छा बाबा." अभि ने गहरी सांस लेकर कहा, "गलती हो गयी. अब कोई भी बात होगी तो सिर्फ तुमसे कहूँगा. तुम्हारी दोस्तों से नहीं." अभि उसे मनाने की गरज से मुस्कुराया.
मान्या ने अपने आंसू पोंछे. कुछ देर चुप रही. फिर अभि की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बोली, "हाँ, हैंडसम तो लग रहे हो."
"शुक्रिया मोहतरमा." अभि खुश हो गया. मान्या उसकी बहुत अच्छी दोस्त थी लेकिन फिर भी उस जैसी समझदार लड़की का इस तरह ज़रा सी बात पर उखड जाना उसके पल्ले नहीं पड़ रहा था.
मान्या अब शांत थी. अभि ने अच्छा मौका जानकार कहा, "देखो मान्या, यह कोई बड़ी बात नहीं है. बल्कि मेरा तो मानना है की हमारे कॉमन फ्रेंड्स होने चाहिए. मान लो कभी ऐसा हो की हमारी तुम्हारी बात नहीं हो पाए या हम मिल न पाए तो कॉमन फ्रेंड्स के ज़रिये हम एक दुसरे के कान्टेक्ट में रह सकते है."
"कान्टेक्ट में हम वैसे भी रह सकते है. फोन से, ईमेल से, मेसेज से. चाहो तो हज़ार तरीके है न चाहो तो हज़ार बहाने." मान्या का स्वर तेज़ होता जा रहा था.
"अरे, तुम समझी नहीं मान्या," अभि ने कोशिश की उसे समझाने की, "अब जैसे मेरे जितने भी दोस्त है वो सब आपस में भी दोस्त है. इससे फ्रेंड्स सर्किल बनता है. दोस्ती और भी ज्यादा मजबूत होती है. मैं तो कहता हूँ की उसी तरह तुम भी मेरे दोस्तों को जानो और मैं भी तुम्हारे दोस्तों को जानू. इससे हम एक दुसरे को और बेहतर जान पायेंगे."
"अभि," मान्या की आवाज़ फिर से भींग गयी थी, "हम दो साल से दोस्त है. क्या मैंने तुम्हे कभी परेशान किया है? कभी कोई ग़लतफहमी रखी तुम्हे लेकर?"
"अरे नहीं कभी नहीं." अभि को लगा मान्या बात को दूसरी तरफ ले जा रही है लेकिन वह रोक नहीं पाया.
"कभी तुम्हे किसी और की ज़रूरत पड़ी मुझे कोई बात समझाने के लिए?"
"नहीं, तुम तो वैसे ही बहुत सुलझी हुई लड़की हो." अभि खुद ही उलझा जा रहा था.
"तो फिर हमारे बीच कॉमन फ्रेंड्स क्यों होने चाहिए? तुम्हे मुझसे बात करने के लिए किसी ज़रिये की ज़रूरत क्यों महसूस होती है. क्यों कोई कॉमन फ्रेंड चाहिए तुम्हे? क्यों आये कोई तीसरा हमारे बीच???" मान्या की आँखें बरसाती नदी की तरह बहने लगी. उसके हाथ से परिणीता छूट कर नीचे गिर पड़ी. उसने अपनी रोती हुई आँखों से एक नज़र भर कर अभि को देखा और पीले गुलाब वाली झाड़ियो से होते हुए पार्क के दुसरे दरवाजे की ओर चली गयी. कुछ कदम तेज़ चलने के बाद वह आँखों से ओझल हो गयी.
अभि उसे जाते हुए देखता रहा. उसने उसे रोका नहीं. आवाज़ भी नहीं दी.
"अभि, ये मान्या थी न?" मिश्रा अंकल बोले. मिश्रा अंकल भी अक्सर पार्क में आते थे. अभि और मान्या दोस्त है, वो जानते थे.
"हाँ." अभि ने कहा.
"क्या हुआ उसे? ऐसे क्यों चली गयी?" मिश्रा अंकल ने पूछा.
अभि ने कोई जवाब नहीं दिया. वह अभी भी उस रास्ते को ही देख रहा था जहा से अभी कुछ देर पहले मान्या रोती हुई गयी थी.
मिश्रा अंकल अचरज से उसे देख रहे थे.
"ये कौन से रंग के गुलाब है, अंकल?" अचानक अभि ने पूछा.
"पीले गुलाब है." मिश्रा अंकल ने हैरानी से जवाब दिया.
अभि के चेहरे पर भीनी सी मुस्कान तैर गयी, "मुझे तो सुर्ख लग रहे है...."
O my God!!! It took me a few minutes to understand the last line. "मुझे तो सुर्ख लग रहे है...." Had I ever fallen in love, I would have easily got the message conveyed.
ReplyDeleteYellow rose turn into red....... when friendship turns into love. Good short story. A nice one. Heart touching. Thank You.
Thanks a lot, Anuj. I am glad that you liked the story. And yes, you need not always fall in love to understand the feelings. It also could be a little bit of general knowledge :)
Deleteकाफी सुलझी हुई उलझनें। समापन ादभुत, सरस।
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawaad Manish ji.
Deleteअच्छा चित्रण किया है आप ने...सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteMere blog par aapka bahut bahut swaagat hai Prasanna Sir. Aapne kahaani pasand ki, mera likhna saarthak ho gaya.
DeleteVERY GOOD DEAR
ReplyDeleteAww... just loved the the way this ended.. :) Beautiful :)
ReplyDeleteThanks a lot, Sonia :)
Deleteबहुत अच्छी कहानी. शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteThank you very much Jenny Ma'am
DeleteBeautiful words........All the Best...!
ReplyDeleteThank you sir
Deleteवाह ... मज़ा आ गया ... जबरदस्त ताना बाना बुना है कहानी में ...
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawaad digambar sir!
ReplyDeleteits Beautiful sneha ji :)
ReplyDeletethank you Sanjay ji
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद सदा।
ReplyDelete