Wednesday, March 16, 2011

ये आँखेँ....

आँखोँ मेँ ख्वाब , ख्वाबोँ मेँ जन्नत है
आँखोँ ने माँगी रब से एक मन्नत है
आँखोँ मेँ बसती थोड़ी शरारत है
आँखोँ मेँ छुपी थोड़ी नज़ाकत है
आँखेँ जो देखे वो बहुत खूबसूरत है
आँखेँ ये इन्हीँ आँखोँ से हुई आहत है
आँखेँ ये दे जाती फिर भी, आँखोँ को बड़ी राहत है
आँखेँ अगर फ़िरा ली तो आ जानी कयामत है
आँखोँ मेँ ही कहीँ बस जाने की चाहत है
आँखेँ ये नसीब हो, क्या आँखेँ इतनी खुशकिस्मत है?
आँखेँ बयां कर देँगी वो जो हक़ीकत है
आँखोँ को झुकाकर रखने की ज़रूरत है
आँखोँ मेँ आखिर क्योँ इतनी इनायत है?
आँखेँ ये आखिर किसकी अमानत हैँ?

4 comments:

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