बिहार की संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है बिहार की लोक कथाएँ. सबसे ख़ास बात यह है कि इन लोक कथाओं में सम्प्रदाय की कोई महत्ता नहीं होती. ये कथाएँ बस कथाएँ होती है. उन्ही में से एक है गुलअफशां की कहानी...
गुलअफशां की कहानी फूलो ने कही थी. इसलिए उसका नाम गुलअफशां पड़ा. गुलअफशां यानी गुलो का अफ़साना यानी वो अफ़साना जो गुलो ने कहा. गुलअफशां गुलिस्तान की शहजादी थी. कहा जाता है की वह जहां भी जाती थी वहाँ फूल खिल जाते थे. वह जिस बाग़ में जाती थी उस बाग़ के मुरझाये हुए फूल भी खिल जाते थे. उसके महल के फूल कभी नहीं मुरझाते थे.
एक सुबह गुलअफशां अन्धेरा रहते ही महल से एक बाग़ की ओर चल पड़ी. महल के सैनिको ने उससे पूछा कि वह कहाँ जा रही है तो उसने जवाब दिया कि वह ज़ल्द ही लौट आएगी.
लेकिन गुलअफशां कही नहीं मिली...
फिर बादशाह ने मुनादी करवा दी कि जो कोई गुलअफशां को ढूंढ कर लाएगा उससे गुलअफशां का निकाह कर दिया जाएगा और आधा गुलिस्तान दे दिया जाएगा [ जैसा कि हर लोक कथा में होता है]. यह मुनादी सुनकर कई लोग गुलअफशां की खोज में निकले लेकिन कोई भी उसे खोज नहीं पाया.
अब ये गुलअफशां के फूल कहाँ खिलते है और कहाँ मिलते है ये तो मुझे पता नहीं लेकिन कहा जाता है की गुलअफशां के फूल कभी नहीं मुरझाते...
गुलअफशां की कहानी फूलो ने कही थी. इसलिए उसका नाम गुलअफशां पड़ा. गुलअफशां यानी गुलो का अफ़साना यानी वो अफ़साना जो गुलो ने कहा. गुलअफशां गुलिस्तान की शहजादी थी. कहा जाता है की वह जहां भी जाती थी वहाँ फूल खिल जाते थे. वह जिस बाग़ में जाती थी उस बाग़ के मुरझाये हुए फूल भी खिल जाते थे. उसके महल के फूल कभी नहीं मुरझाते थे.
[चित्र: गूगल से साभार]
एक सुबह गुलअफशां अन्धेरा रहते ही महल से एक बाग़ की ओर चल पड़ी. महल के सैनिको ने उससे पूछा कि वह कहाँ जा रही है तो उसने जवाब दिया कि वह ज़ल्द ही लौट आएगी.
महल से कुछ दूर एक बाग़ था. गुलअफशां वही चली गयी. उस बाग़ के बहुत सारे फूल मुरझा गए थे. जैसे ही गुलअफशां वहाँ पहुंची, उस बाग़ के सारे फूल खिल गए. यह देख कर गुलअफशां बहुत खुश हुई. वह काफी देर तक बैठ कर फूलो से बतियाती रही. जब शाम होने को आई और गुलअफशां चलने को हुई तब वो सारे मुरझाये हुए फूल जो गुलअफशां के आने से खिल गए थे, फिर से मुरझाने लगे. यह देख सारे फूल डर गए. उन्होंने सोचा कि कितना अच्छा हो यदि गुलअफशां इस बाग़ से जा ही न सके. यही सोचकर उन फूलो ने गुलअफशां को खुद में क़ैद कर लिया.
जब रात ढले भी गुलअफशां घर नहीं पहुंची तो बादशाह ने अपने सैनिको से पूछा. सैनिको ने जवाब दिया कि गुलअफशां ने उन लोगो से कहा था कि वह ज़ल्दी ही लौट आएगी. यह सुनकर बादशाह ने खोजी दस्ते चारो दिशा में दौड़ा दिए. हर खोजी दस्ता गुलअफशां को आवाज़ लगाता हुआ जाता - "हे गुलअफशां कहा गयी, तीरनछोड़ [ तीरनछोड़ यानी जो तीर छोड़ते है यानी सैनिक] को कहे गयी... हे गुलअफशां कहाँ गयी, तीरनछोड़ को कहे गयी..."
लेकिन गुलअफशां कही नहीं मिली...
फिर बादशाह ने मुनादी करवा दी कि जो कोई गुलअफशां को ढूंढ कर लाएगा उससे गुलअफशां का निकाह कर दिया जाएगा और आधा गुलिस्तान दे दिया जाएगा [ जैसा कि हर लोक कथा में होता है]. यह मुनादी सुनकर कई लोग गुलअफशां की खोज में निकले लेकिन कोई भी उसे खोज नहीं पाया.
एक बार एक शहजादा गुलअफशां की खोज में निकला. वह सबसे पहले गुलिस्तान पहुंचा. वहाँ उसने सबसे बड़े चित्रकार को बुलाकर गुलअफशां की तस्वीर बनवाई. उसने गुलअफशां बारे में सारी जानकारी इकट्ठी की और उसकी खोज में चल पड़ा. चलते चलते वह गुलअफशां को आवाज़ देता जाता - "हे गुलअफशां कहां गयी, तीरनछोड़ को कहे गयी..." साथ ही वह गुलअफशां की तस्वीर को भी अपने सीने से लगाए रहता. उसे गुलअफशां से मुहब्बत हो गयी थी.
चलते चलते शहजादा उसी बाग़ में पहुँच गया जहा गुलअफशां को फूलो ने क़ैद करके रखा था. शहजादा गुलअफशां की याद में बिलकुल बेचैन हो गया. उसे लगा कि अब उसे गुलअफशां कभी नहीं मिलेगी. गुलअफशां की याद में उसे होश नहीं रहा और वह बेहोश होकर ठीक उन्ही फूलो की जड़ के पास गिर पड़ा जिनमे गुलअफशां क़ैद थी. बेहोशी कि हालत में ही शहजादे की आँखों से आंसू बह निकले. क्यूंकि ये आंसू शहजादे की पाक मुहब्बत का सबूत थे, उन्ही आंसुओ से वे जंजीरे गल गयी जिनसे गुलअफशां को बाँधा गया था. ज़ंजीरो के गलते ही गुलअफशां फूलो की क़ैद से आज़ाद हो गयी.
गुलअफशां ने जब बेहोश शहजादे को देखा तो वह समझ गयी कि इसी शहजादे ने उसे क़ैद से छुडाया है. उसने शहजादे की आँखों पर हाथ फिराया तो शहजादे को होश आ गया. गुलअफशां को अपने सामने देखकर शहजादे की ख़ुशी का ठिकाना न रहा. वह गुलअफशां को अपने घोड़े पर बिठाकर चलने को तैयार हुआ. जैसे ही गुलअफशां बाग़ से जाने को तैयार हुई, वैसे ही बाग़ के सारे फूल मुरझाने लगे. यह देखकर गुलअफशां को दया आ गयी. उसने सोचा की आखिर फूलो की भी तो इच्छा थी की वे हमेशा खिले रहे. गुलअफशां इतनी नेकदिल थी की उसने उसी वक़्त उन फूलो के हमेशा खिले रहने की दुआ खुदा से मांगी. खुदा ने नेकदिल गुलअफशां की दुआ कबूल की. शहजादा गुलअफशां को लेकर वापस गुलिस्तान चला गया.
उस बाग़ के फूल फिर कभी नहीं मुरझाएं और उन्हें गुलअफशां के फूलो के नाम से ही जाना जाने लगा.
अब ये गुलअफशां के फूल कहाँ खिलते है और कहाँ मिलते है ये तो मुझे पता नहीं लेकिन कहा जाता है की गुलअफशां के फूल कभी नहीं मुरझाते...
[चित्र: गूगल से साभार]
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-10-2016) के चर्चा मंच "आदिशक्ति" (चर्चा अंक-2482) पर भी होगी!
ReplyDeleteशारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद सर!
Deletebahut accha likha hai
ReplyDeleteशुक्रिया पारुल जी :)
Deleteबहुत गहरी सोच लिए हुए आपकी पोस्ट
ReplyDeleteधन्यवाद संजय जी
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