ज़िन्दगी में इस क़दर कोहरा घना है
क्या पता कौन दोस्त कौन दुश्मन बना है
क्या कहूँ किसने मेरे दिल पर वार किया
यहाँ तो हर हाथ मेरे ही खून से सना है
मेरी चुप्पी को हरगिज़ न समझिये मेरी नाराज़गी
दरअसल यहाँ मेरा मुस्कुराना भी मना है
मालूम नहीं इनमे कहाँ खो सी गयी है वो
मुझे इन लम्हों में से ज़िन्दगी को छाँटना है
ये मेरी ग़ज़ल पढ़कर जाने क्यों खामोश है वो
मैं समझूँ तारीफ़ मगर ये वक़्त की आलोचना है
- स्नेहा गुप्ता
क्या पता कौन दोस्त कौन दुश्मन बना है
क्या कहूँ किसने मेरे दिल पर वार किया
यहाँ तो हर हाथ मेरे ही खून से सना है
मेरी चुप्पी को हरगिज़ न समझिये मेरी नाराज़गी
दरअसल यहाँ मेरा मुस्कुराना भी मना है
मालूम नहीं इनमे कहाँ खो सी गयी है वो
मुझे इन लम्हों में से ज़िन्दगी को छाँटना है
ये मेरी ग़ज़ल पढ़कर जाने क्यों खामोश है वो
मैं समझूँ तारीफ़ मगर ये वक़्त की आलोचना है
- स्नेहा गुप्ता
सुन्दर प्रस्तुति। सुप्रभात...!
ReplyDeletedhanyawaad Sir!
Deletemat kaho aakash me kohra ghana hai....
ReplyDeleteyeh kisi ki vyaktigat aalochna hai...
~Dushyant Kumar
nice Parody
Sorry sir! It is not parody. Just a coincidence
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