अब भी तो कुछ रहम कर ऐ
बेवफा ज़िन्दगी
दे रही किस बात की तू सज़ा
ज़िन्दगी
सांस लेना भी क्या अब गुनाह
हो चला है
हो रही क्या मुझसे यही खता
ज़िन्दगी..
ख़ुशी में खुश होने का भी हक
दिया नहीं तूने
क्यों करती रही हरदम ज़फ़ा
ज़िन्दगी
निचुड़ी हुई आँखे और होंठ
बेबस मुस्कुराने को
क्यों ऐसी रही तेरी बेदर्द
अदा ज़िन्दगी
बेरहम, तू उसे आने भी तो
नहीं देती
कि मौत आये और तेरा हर सितम
हो फना ज़िन्दगी
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स्नेहा गुप्ता
26/04/2013
11:00pm